मेरा नाम अभिनव है। मेरी उम्र 45 साल है। मैं कानपुर रहता हूँ। मेरे लण्ड का साइज़ 6 इंच है। मैंने अनेक महिलाओं के साथ सेक्स किया है और अधिकाँश महिलाएँ मुझे ऐसी मिलीं जो मुझसे कम से कम 15 साल बड़ी रहीं। हमउम्र स्त्रियाँ मुझे कम मिलीं।
आज आप सबको अपनी कामुकता की हिंदी सेक्स स्टोरी सुनाना चाहता हूँ कि किस तरह मैंने अपने दोस्त के भाई की शादी में उसी के एक रिश्तेदार की बेटी को चोदा।
ये मेरी पहली कामुकता हिंदी सेक्स स्टोरी है। उम्मीद है कि आप सबको पसंद आएगी।
यह हिंदी सेक्स स्टोरी लगभग 20 साल पुरानी है। जब मेरे दोस्त के बड़े भाई की शादी हुई थी।
आप सब तो जानते ही हैं कि शादी में बड़ा चहल-पहल का माहौल होता है. ऐसा ही हमारे यहाँ भी था। हम सब खुशियाँ मना रहे थे।
शादी वाले घर में पचास काम होते हैं। मैंने अपने ज़िम्मे लगभग सभी काम लेकर एक तरह से अपने दोस्त को किसी भी ज़िम्मेदारी से मुक्त कर रखा था। और इसी कारण मेरी वहाँ पूछ भी बहुत हो रही थी।
तभी मैंने देखा कि मेरा दोस्त किसी लड़की से बात कर रहा है। लड़की की पीठ मेरी तरफ थी। गज़ब का फिगर था उसका, पीछे से लड़की एकदम मस्त माल लग रही थी।
तो मैं भी ठरकपन में कूदता हुआ वहाँ पहुँच गया।
मेरे दोस्त ने मेरा परिचय उससे करवाया कि उनके रिश्तेदार की बेटी है, गाँव से आई है। उसका नाम मिनी (बदला हुआ नाम) था। उसके पिता नहीं थे तो माँ के साथ ही आई थी। उम्र 19-20 साल की रही होगी।
मिनी देखने में तो साधारण ही थी, चेहरा भी बस ठीकठाक ही था, बातचीत में भी देहातीपन था। पर उस समय तक मुझे नहीं मालूम था कि यही लड़की जल्द ही मेरे लौड़े के नीचे आने वाली थी। तब तक मेरे मन में उसके प्रति कोई भावना न थी। मेरा नाम उस घर में इतनी बार लिया जा रहा था कि उसने मेरा नाम सुन रखा था।
भाई की बारात आगरा से थोड़ी दूर एक गाँव में जानी थी। हम सब बस से निकले, रास्ते भर मस्ती-मज़ाक चलता रहा।
इस दौरान मैंने गौर किया कि मिनी ज़्यादातर मेरे आसपास ही रहने की कोशिश कर रही थी। वह ज़्यादातर मेरे पास ही बैठती और किसी न किसी बहाने मुझे छू लेती। जब कभी उससे निगाहें मिल जातीं तो मानो अपनी आँखों से मूक निमन्त्रण दे रही होती।
उसकी इन सब हरकतों के कारण मेरे अंदर की कामुकता जाग गयी. फिर मैं भी उसे चोदने की योजना बनाने लगा।
लड़कियाँ चाहे जितना भी पहल कर लें. पर शर्माती तो हैं ही. वहीं पुरुषों को छेद के अलावा और कुछ नहीं दिखता।
तो अगली बार जब वो मेरे बगल में बैठी तो मैंने मौका देखकर उसका हाथ पकड़ और फिर देर तक पकड़े रहा।
एक सेकण्ड के लिए वह थोड़ा कसमसाई फिर मुस्कराने लगी। इससे मेरी हिम्मत और बढ़ गयी।
अब मैं अपनी कोहनी से उसकी चूची हल्के से दबा देता। वह भी इतने पास सरक आयी कि मुझे उसकी चूची छूने के लिए ज़रा भी कोशिश न करनी पड़े. लगातार उसकी चूची मेरी कोहनी से छू रही थी।
फिर मैंने अपना हाथ उसकी जाँघ पर रख दिया और धीरे-धीरे ऊपर की ओर सरकाने लगा।
उसकी आँखें मादक होती जा रही थीं। फिर मैंने उसकी बुर छूने के इरादे से सलवार के ऊपर से ही उसकी बुर पर हाथ रख दिया। उसकी बुर भयंकर गर्म थी तथा सलवार गीली।
शायद उसकी बुर पानी छोड़ रही थी।
मैंने उसकी ओर देखा. उसकी आँखों में भयंकर कामुकता थी। मैं समझ गया कि उसका अपने मन पर नियन्त्रण नहीं है।
इस हालत में हमें कोई देख लेता तो शक करता इसलिए फिर मैं थोड़ा सँभलकर बैठ गया।
रास्ते में तो इससे ज़्यादा कुछ हो भी नहीं सकता था. पर मौका देखकर मैं जब तब उसकी चूचियों को दबा देता या उसकी कमर की गोलाइयों को महसूस कर लेता।
वह बहुत खुश हो जाती।
बारात को अपनी मंज़िल पहुँचने में शाम हो गयी थी। हमें एक धर्मशाला में ठहराया गया।
जल्द ही कार्यक्रम शुरू हो जाने वाले थे। हम लोगों के पास तैयार होने को बहुत कम समय था। सुबह जल्दी ही वापसी के लिए भी निकलना था।
सब लोग तैयार होने के लिए अपने-अपने कमरों में चले गए। स्त्रियों की व्यवस्था निचली मंज़िल में तथा पुरुषों की व्यवस्था ऊपरी मंज़िल में थी।
मैं मुँह-हाथ धोकर फटाफट तैयार हो गया फिर धर्मशाला की छत पर टहलने निकल गया। तब तक 7:30 बज गए थे तथा अँधेरा हो गया था।
छत पर ही एक छज्जा आँगन की तरफ था। मैं उसी तरफ खड़ा था कि तभी मैंने देखा कि मिनी ऊपरी मंज़िल की तरफ आ रही है। वह सफेद लहँगा पहने हुए थी। सज-धजकर बहुत अच्छी लग रही थी। मुझे लगा कि किसी से कुछ सामान लेने आ रही होगी पर उसे देखते ही मेरे अरमान फिर से मचलने लगे और मेरा लण्ड खड़ा होने लगा। मुझे लगा कि अब मिनी की कुंवारी बुर में कामुकता हिंदी सेक्स स्टोरी लिखी जा सकती है.
तभी मैंने देखा कि वह ऊपरी मंज़िल में न जाकर छत की तरफ आ रही है। मेरे मन में लड्डू फूटने लगे। मैं सीढ़ियों की तरफ ही जाकर खड़ा हो गया।
अँधेरे के कारण छत पर कोई मुझे नहीं देख सकता था। जैसे ही वह छत पर आई मैं उसके सामने आ गया। मुझे देखकर उसे कोई आश्चर्य ही नहीं हुआ। मुझे ऐसा लगा कि जैसे उसे मालूम हो कि मैं यहाँ खड़ा उसका इंतज़ार कर रहा हूँ।
मैंने उसका हाथ पकड़ा और उसे लेकर छत पर ऐसी जगह आकर खड़ा हो गया जहाँ से हम लोग सीढ़ियों की तरफ आराम से नज़र भी रख सकते थे. और किसी के ऊपर की तरफ आने की स्थिति में हम-दोनों समय रहते अलग भी हो सकते थे।
आसपास भी कोई इतनी ऊँची इमारत भी नहीं थी जहाँ से हमें कोई देख सके। इसलिए उस तरफ से हमें कोई डर नहीं था।
जल्दी ही नीचे भी जाना था वरना कोई हमारी खोज में ऊपर भी आ सकता था। इसलिए मैंने समय बिल्कुल भी न गँवाते हुए उसे अपनी तरफ खींच लिया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये और उन्हें चूसने लगा।
वह पूरा साथ दे रही थी।
उसके होंठ चूसते-चूसते मेरे हाथ अपने आप ही उसकी कमर पर चले गए और उसकी दोनों गोलाइयों को दबाने लगे।
वह एकदम बेल की तरह मुझसे लिपट गयी थी। मैं उसकी सारी लिपस्टिक चूस गया और फिर उसके पूरे चेहरे को चूमने लगा।
इसके साथ ही मैंने उसकी चोली के हुक खोल दिये और उसकी दोनों चूचियाँ मेरे सामने नुमाया हो गई। चोली बहुत तंग होने के कारण उसने ब्रा नहीं पहनी हुई थी।
मैं उसके गले तथा छाती को चूमने में लगा था और वह मेरी पैंट के ऊपर से मेरा लण्ड टटोल रही थी।
अँधेरे में कुछ साफ दिख तो रहा नहीं था तो हम दोनों बस एक-दूसरे के अंगों से खेल रहे थे।
मैंने उसकी चूचियों को दबाना शुरू किया और दबाते-दबाते उन्हें मसल डाला. उसके मुँह से एक कराह निकल गयी। फिर मैंने उसका लहँगा ऊपर करके उसकी पैंटी के अंदर से उसकी बुर में उँगली डाल दी।
मिनी की अनछुई बुर बेहद कसी और गीली थी। उँगली बहुत अंदर तक नहीं जा रही थी पर इतने में ही मिनी उत्तेजना में पागल हुई जा रही थी।
उसकी बुर में मैंने उँगली आगे-पीछे करनी शुरू की तो मिनी ने मेरा चेहरा अपनी छाती में कसकर भींच लिया और अपनी बुर में उँगली जाने का मज़ा लेने लगी। उसकी सिसकारियाँ तेज़ और मादक होती जा रही थीं. वो बेतहाशा मेरे होंठों को चूसने में लगी थी।
मैंने उसकी पैंटी उतारकर उसकी दोनों टाँगें फैला दीं. थोड़ी देर तक मैं उसकी बुर को रगड़ता-मसलता रहा और उसकी चूचियों को दबाता रहा।
मिनी अपना हाथ मेरी पैंट के ऊपर से मेरे लण्ड पर रखे थी। उसने अपने हाथ से मेरे लण्ड पर दो थपकियाँ लगाईं।
मैं उसका इशारा समझ गया और अपनी चैन खोलकर लण्ड निकाला और मिनी के हाथ में दे दिया।
लण्ड एकदम कड़क हो रहा था, मैंने मिनी से कहा- तुम्हारी यह बहुत प्यासी है.
तो वो बोली- इसकी प्यास बुझा दो।
मैंने कहा- इसकी प्यास तुम्हारी बुर में जाकर बुझेगी।
इस पर मिनी मुस्कराकर मेरे एकदम नज़दीक आ गई और मेरे लण्ड से अपनी बुर को रगड़ने लगी। उसकी बुर टपकने लगी थी।
मैंने उसे घुटनों पर बैठाया और लण्ड को उसके मुँह के पास ले जाकर उसे चूसने को कहा।
मिनी ने लण्ड चूसने से मना कर दिया। मैंने थोड़ा ज़बरदस्ती करते हुए उसके होंठों पर अपना लण्ड लगाकर फिरा दिया पर उसने अपने होंठ नहीं खोले।
वह बस लण्ड को कसकर पकड़े रही और दबाती रही।
मेरा रस जो उसके होंठों पर लग गया था उसे उसने मेरे कहने से अपनी जीभ से चाट लिया।
वह बार-बार मुझसे बुर में लण्ड डाल देने की मिन्नत-सी कर रही थी। पर मैं उसे समझा रहा था कि यह जगह इस काम के लिए बहुत ठीक नहीं है.
लेकिन वासना उसके सिर पर इतनी सवार हो गयी थी कि उसे मौके की नज़ाक़त का ज़रा भी ध्यान नहीं था।
वहाँ कहीं ऐसी जगह नहीं थी जहाँ पर उसे चोद सकूँ।
ऊपर से वह सफेद लहँगा पहने थी, यदि खून निकलता तो सारा लहँगा खराब हो सकता था।
हम लोग इस तरह लगभग 20 मिनट तक मस्ती करते रहे।
नीचे आँगन में लोगों की आवाजाही कम होती जा रही थी। कोई धर्मशाला में बाहर से ताला लगाकर न चला जाये इस डर से कुछ समय बाद मैंने उसे अलग होने तथा कपड़े ठीक करने को कहा।
मिनी मुझे छोड़ना ही नहीं चाहती थी. वह मुझसे बुरी तरह चिपकी हुई थी. वो अपने अंगों को मेरे शरीर से छुआ रही थी. तो मैं ही उसे छोड़कर दूर हट गया तथा सीढ़ियों पर रोशनी में आकर खड़ा हो गया।
शायद मिनी को लग रहा था कि मैं वापस आकर अपना मिलन पूरा करूँगा. इसलिए मिनी कुछ देर वहीं खड़ी रही.
पर जब मैं न आया तो उसने भी अपने कपड़े ठीक किये और सीढ़ियों पर आ गयी जहाँ मैं खड़ा था।
हम दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा।
मिनी के चेहरे पर गहरी मायूसी तथा आँखों में आँसू थे।
मैंने उसे दिलासा दिया और समझाया कि वह चिंता न करे। जल्द ही अपना मिलन पूरा करूँगा।
यह सुनकर मिनी मुझसे कसकर लिपट गयी तथा मेरे होंठों पर उसने एक भरपूर चुम्बन दिया।
इसके बाद हम नीचे आ गए।
मुँह-हाथ धोकर मैं शादी के कामकाज में लग गया। वहाँ फिर ज़्यादा कुछ नहीं हो पाया. मिनी भी मेरे आसपास ही मँडराती रही.
पर मैं दोस्तों के बीच इतना मशरूफ रहा कि उसकी तरफ ध्यान नहीं दे सका।
सुबह जल्दी ही वापसी भी होनी थी।
वापसी में मेरे दोस्त ने मुझसे भाई-भाभी (नई वाली) के साथ कार से ही चले जाने को कह दिया तो मैं कार से वापस आ गया।
रास्ते में भाभीजी से भी हल्की फुल्की मज़ाक कर देता था तो भाभीजी भी मुस्करा देतीं।
इन भाभीजी को भी मैंने बाद में चोदा पर वह कहानी बाद में सुनाऊँगा।
घर पहुँचकर भाई साहब भाभी को स्त्रियों के ठहरने की जगह पर छोड़कर नीचे आ गए और मेरे साथ टी वी देखने लगे।
अत्यधिक थका होने के कारण मुझे झपकी लग गयी।
लगभग एक घण्टे के बाद जब मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि उस कमरे में मेरे तथा मिनी के अलावा और कोई नहीं है।
मिनी मेरे बिल्कुल बगल में बैठी थी और शिकायत भरी नजरों से मुझे देख रही थी क्योंकि मैं उसे बताकर नहीं आया था।
मिनी को सांत्वना देने के लिए मैंने अपने हाथ से उसकी चूची को दबाना शुरू कर दिया। वो अपलक मेरी ओर शिकायती नज़रों से देखे जा रही थी।
धीरे-धीरे उसकी आँखें भी नशीली होने लगीं.
तभी बाहर कुछ सामान रखने की आवाज़ें आईं। हम लोग समझ गए कि शादी में मिला सामान रखवाया जा रहा है।
मिनी भी मेरे पास से हट गई और मैं भी थका होने के कारण करवट बदलकर सो गया।
फिर मेरी आँख लगभग 2:30 बजे खुली। आसपास देखा तो सब लोग बड़ी गहरी नींद में सो रहे थे।
मैं उठा और हर कमरे का मुआयना किया। हर कमरे में आदमी या औरतें अस्त-व्यस्त गहरी नींद सो रहे थे।
सभी लोग 24 घण्टों से भी ज़्यादा समय तक लगातार जागे थे इसलिए सबको गहरी नींद आ जाना कोई असामान्य बात नहीं थी।
जब मुझे तसल्ली हो गयी कि सब लोग बहुत गहरी नींद में हैं तब मैंने मिनी को ढूँढ़ा।
मिनी एक कमरे में 5-6 लड़कियों के साथ सोई पड़ी थी। पहले मैंने हर लड़की को एक-एक मिनट तक निहारा ताकि यह पक्का हो जाये कि सब वास्तव में सो रही हैं।
तसल्ली हो जाने पर मैं मिनी के पास आकर बैठ गया। उसे हिलाकर उठाने की कोशिश की।
उसकी चुदाई का बढ़िया मौका था इसलिए उसे उठाना ज़रूरी था. पर वह उठ नहीं रही थी।
फिर मैंने एक जोखिम उठाया। मैंने उसका लहँगा सरकाकर उसकी कमर से ऊपर कर दिया फिर उसकी पैंटी भी उतारकर नीचे एड़ियों तक कर दी।
मैंने आराम से उसकी दोनों जाँघों को चाटा।
इतना करने से भी मिनी की नींद नहीं खुली. यानि कि वह गहरी नींद में थी।
उसके बाद मैंने उसकी चोली के हुक खोल दिये। उसकी चूचियाँ उछलकर बाहर आ गईं।
अब मैंने दोनों हाथों से उसकी दोनों चूचियाँ दबाईं. फिर उसकी एक चूची अपने मुँह में भरकर उसे बेतहाशा उसका निप्पल चूसने लगा।
साथ ही मैंने अपनी उँगली भी उसकी बुर में चलानी शुरू कर दी।
कुछ ही पलों में उसकी सिसकारियाँ निकलने लगीं।
जब मैंने देखा कि उसकी नींद खुल रही है तो मैंने उसके निप्पल को ज़ोर से काट लिया।
वो एकदम सकपकाकर उछलकर बैठ गयी.
पहले उसने मुझे देखा फिर अपनी हालत को फिर चारों ओर देखा. उसने देखा कि सब लोग गहरी नींद सो रहे थे।
तब उसकी जान में जान आई।
मैंने उसके होंठों पर ज़ोर से चुम्बन किया और उसे अपने पीछे आने का इशारा किया।
उसने अपने कपड़े ठीक किये और मेरे पीछे चल दी।
मैं उसको लेकर ऊपरी तल में बने भण्डार में ले आया। घर के सारे लोग बड़ी गहरी नींद में सो रहे थे तो वहाँ किसी के आने की कोई सम्भावना नहीं थी।
मैंने उसे इत्मीनान से पूरी नँगी किया। सबसे पहले उसके लहँगे का नाड़ा ढीला किया तो लहँगा नीचे सरक गया। फिर उसकी चोली को उसके जिस्म से अलग कर दिया।
अब वह केवल पैंटी में थी।
आहिस्ते से मैंने उसकी पैंटी भी सरकाकर उसके जिस्म से अलग कर दी।
पहली बार मैंने उसको ठीक से निहारा. गेहुँआ रंग, तराशा हुआ गदराया बदन।
मैंने एक तख्त को साफ करके उस पर कुछ बोरियाँ बिछा दीं तथा एक पल्ली डाल दी ताकि उस पर आराम से चुदाई कर सकूँ।
चुदाई में मैं कोई जल्दबाजी नहीं करता। बहुत प्यार से हौले से चुदाई करता हूँ, जो भी औरत मुझसे एक बार चुदवा लेती है वह मेरी मुरीद बन जाती है।
मैं तख्त पर बैठ गया उसे झुकाकर उसके होंठ अपने मुँह में लिए और उन्हें चूसने लगा।
मैं बैठा था, मेरे होंठों में अपने होंठ देने के लिए उसे झुकना पड़ा था तो मैंने उसकी पीठ से अपने दोनों हाथ फिराता हुआ उसकी गांड तक ले गया।
फिर मैंने उसे पीछे घूमने को कहा।
वह पीछे घूम गयी तो मैंने उसकी गांड की गोलाइयों अच्छी तरह महसूस किया।
फिर मैं उससे चिपक गया और उसकी बुर में उँगली डाल दी।
इसी समय उसने मुझसे अपना लण्ड दिखाने को कहा।
मैंने भी अपनी पैंट और चड्ढी उतारी और उसको अपना तना हुआ तम्बू दिखाया। बड़े गौर से उसने मेरे लण्ड को देखा तो मैंने उससे चूसने के लिए कहा।
उसने मना तो किया पर उसमें उतनी झिझक नहीं थी. मेरे थोड़ा ज़ोर देने पर वह मान गयी।
उसने मेरा लण्ड अपने मुँह में रखा और धीरे-धीरे चूसने लगी। थोड़ी देर उसका मुँह चोदने के बाद मुझे लगा कि मेरा निकलने वाला है। मैंने उसका सिर कसकर पकड़ लिया और धक्के तेज़ कर दिए और उसके मुँह में ही झड़ गया।
उसने बहुत कोशिश की पर जब तक उसने मेरा सारा माल निगल नहीं लिया तब तक मैंने उसको अपना लण्ड उसके मुँह से निकालने नहीं दिया।
अपने माल की अन्तिम बूँद भी उसकी जीभ में पौंछकर ही मैंने अपना लण्ड उसके मुँह से निकाला।
मेरी इस हरकत से वह बहुत गुस्सा हो गयी और मुझे गुस्से से देखने लगी।
रूठने-मनाने का समय नहीं था इसलिए मैंने अपना काम जारी रखा।
मैंने उसको अपनी गोद में बैठा लिया और उसके होंठों को चूमने लगा। इसी के साथ उसकी बुर में उँगली करके उसकी वासना को जगाने लगा।
थोड़ी ही देर में उसने सब कुछ भूलकर अपनी टाँगें फैला दीं और तेज़ सिसकारियां लेने लगी। हम दोनों चूमते हुए अपनी जीभें भी आपस में लड़ा रहे थे।
वह कसकर मुझसे लिपट गयी और ‘डाल दो’, ‘और मत तड़पाओ’, ‘मुझे अपना बना लो, प्लीज़’ कहकर बड़बड़ाने लगी. अपने हाथ से मेरा लण्ड कसकर पकड़कर दबाने लगी।
मैंने उस पर दया करते हुए उसको लिटाया और पैर फैलाने को कहा।
वह अपने पैर फैलाकर लेट गयी।
मैंने उसकी बुर के द्वार पर अपना लण्ड सेट किया और उससे पूछा- तैयार हो?
उसने भी तड़पकर जवाब दिया- हाँ आंआअ!
एक धक्का लगाया मैंने तो उसकी बुर में आधा लण्ड उतर गया, उसके मुख से घुटी हुई चीख निकली- उई माँ आ अ अ स्स!
मैंने और धक्का कसकर लगाया तो मेरा लण्ड उसकी बुर की झिल्ली फाड़ता हुआ अंदर घुस गया।
इस बार वह बहुत ज़ोर से चीखी- मम्मी ईईई … मैं मर गयी ईईई।
घर में किसी के जागने की कोई सम्भावना नहीं थी इसलिए मैंने उसका मुँह बन्द करने का कोई प्रयास नहीं किया। मैंने उसकी तरफ देखा तो उसकी दोनों आँखों से जलधारा गिर रही थी।
मैं उसी हालत में उसके ऊपर लेट गया, उसकी चूचियों को चूसने लगा।
एक ही मिनट में उसने अपनी पीड़ा भूलकर मेरा सिर अपनी छाती से चिपकाने लगी। इसके साथ ही उसने अपनी गांड हिलाकर शुरू करने का इशारा किया।
मैंने धक्के लगाने शुरू किये और 15 मिनट तक उसे बेदर्दी से चोदा। इस दौरान उसने मुझे अपने आलिंगन में कसा हुआ था. वो लगातार बड़बड़ाये जा रही थी- आह … मेरे अभिनव … करते रहो! बहुत अच्छा लग रहा है।
15 मिनट में वह दो बार झड़ चुकी थी पर मेरा नहीं निकला था।
तब मैंने उसको घोड़ी बनाया और पीछे से उसकी बुर में लण्ड सेट किया और एक ही झटके से उसकी बुर में लण्ड उतार दिया।
मेरे धक्कों से उसकी चूचियाँ भी बुरी तरह हिल रही थीं जिन्हें मसल-मसलकर मैं उसकी वासना बढ़ा रहा था।
इस दौरान वह एक बार और झड़ गयी। तभी मेरा भी होने को आया तो मैंने उससे पूछा- कहाँ निकालूँ?
पर उसने सुना नहीं, मैंने फिर पूछा पर उसने फिर भी नहीं सुना। वह आँख बंद किये लगातार बड़बड़ाये जा रही थी।
जब मैंने देखा कि और नहीं रोक सकता अब मेरा छूट ही जायेगा तो मैंने सोचा कि बुर में ही छोड़ूँगा तो कहीं गर्भ न ठहर जाए। यह सोचकर मैंने उसकी बुर से लण्ड निकाला और उसको पीठ के बल लिटा दिया।
उसकी आँखें अभी भी बन्द थीं। मैंने 69 वाले पोज़ में आकर उसके मुँह में फिर से अपना लण्ड पेल दिया और उसके मुँह में ही झड़ गया।
मैं उसकी बुर को नहीं चाट रहा था बस अपने हाथों से उसे सहला रहा था।
वो अपने मुँह से लण्ड निकालने के लिए छटपटा रही रही और अपने हाथों से मेरी जाँघ को मार रही थी पर मैंने उसे नहीं निकाला।
फिर से उसे मेरा माल पीना ही पड़ गया।
उसे फिर से गुस्सा आ गया था तो मैंने उसे अपने गले से लगाकर बहुत कसकर चिपका लिया.
मैंने उससे कहा- आज से तुम बस मेरी हो! जल्दी ही तुम्हारे गाँव आकर मैं तुम्हारी चुदाई करूँगा।
इस बात से वह खुश हो गयी और मुझसे चिपक गयी।
बहुत देर तक हम दोनों नंगे एक दूसरे से चिपके पड़े रहे।
इस दौरान उसने चाटकर मेरा पूरा लण्ड साफ किया और उससे खेलती-चूमती रही। फिर मैंने उसे उसका खून दिखाया जो उसकी सील टूटने पर निकला था।
थोड़ी देर बाद उसने मेरा लण्ड फिर से हिला-हिलाकर खड़ा किया।
मैंने मिनी की गांड मारने के इरादे से इस बार अपना लण्ड उसकी गांड के छेद में सेट किया और अंदर डालने के लिए धक्का मारा।
वह दर्द से बिलबिला उठी।
फिर से दोबारा प्रयास करने पर भी उसे बहुत जोर का दर्द हुआ। फिर उसके बाद वह गांड में लण्ड लेने को तैयार नहीं हुई।
मैंने भी उसके बाद ज़ोर नहीं दिया और उससे कहा- जब मैं तुम्हारे घर आऊँगा तब तुम्हारी गांड ज़रूर मारूँगा।
फिर उसके बाद मैं ऐसा मुँह बनाकर बैठ गया मानो मुझे बहुत बुरा लग गया हो।
यह देखकर मिनी मेरे पास आई और मुझे लिटाकर मेरे लण्ड को अपने हाथ से अपनी बुर पर सेट करके बैठ गयी। पूरा लण्ड एक झटके से उसकी बुर में उतर गया। अपनी कमर हिला-हिलाकर उसने पूरी मस्ती से चुदाई करी।
आधे घण्टे की चुदाई के बाद मैंने उसे बताया- मेरा होने वाला है.
तो उसने नशीली निगाहों से मुझे देखा और मेरा लण्ड अपने मुँह में लेकर उसे चूसने लगी।
इस बार वो बहुत अच्छे से चूस रही थी। सारा माल अपने मुँह में लेकर पी गयी और मेरा लण्ड भी चाटकर साफ कर दिया।
इससे मुझे बहुत हैरत हुई।
अब तक हम लोगों को दो घण्टे से ज़्यादा समय हो गया था। अब कोई जाग भी सकता था तो हम उठे और अपने-अपने कपड़े पहनकर बैठ गए।
एक दूसरे को अपने आगोश में लिए हम बात कर रहे थे।
इस पूरे दौरान मेरा हाथ या तो मिनी की चूचियों पर होता या उसके लहँगे के अंदर उसकी चड्डी पर।
उसने मुझसे पूछा- मेरे गाँव कब आओगे?
मैंने उसके होंठ चूसते हुए कहा- एक हफ्ते के भीतर आ सकता हूँ यदि जैसा मैं कहूँ वैसा तुम करो तो।
मिनी ने मुझसे लिपटकर कहा – जी, करूँगी। जैसा कहोगे वैसा करूँगी।
मैंने उसको समझाया- जब वापस जाना तो यह लहँगा और कुछ और ज़रूरी सामान यहीं छोड़ जाना। दो दिन के बाद फोन करके उसे जल्दी भिजवाने को कह देना।
मिनी ने पूछा- पर इतने भर से अपना मिलन कैसे होगा?
मैंने अपना हाथ उसके लहँगे के अंदर उसकी चड्डी में डालकर उसकी बुर को दबाते हुए कहा- मेरी जान, तुम बस इतना करो और बाकी सब मेरे ऊपर छोड़ दो। लेकिन वहाँ तुम्हारी गांड ज़रूर मारूँगा यह ध्यान रखना।
वो मुस्करा दी पर बोली कुछ नहीं।
इसके बाद हम दोनों फिर मस्ती में डूब गए। उसने मेरी चेन खोलकर मेरा लण्ड बाहर निकाल लिया और उसे चूमने लगी।
शायद उसे मेरे वीर्य का स्वाद पसंद आने लगा था।
उसके चूमने चाटने की वजह से लण्ड फिर से खड़ा हो गया।
अब क्या करें? कपड़े पहन चुके थे तो चुदाई नहीं हो सकती थी। मैंने मिनी के लहँगे को ऊपर किया और उसके ऊपर लेट गया।
मिनी की चड्डी बिना उतारे ही उसकी बुर के ऊपर अपना लण्ड घिसने लगा। बेशक मिनी मेरा पूरा साथ दे रही थी पर मज़ा नहीं आ रहा था।
तभी नीचे के खण्ड में लोगों की बातें करने की आवाज़ें सुनाई दीं। तो हम दोनों फिर अलग हो गए।
मैंने मिनी को नीचे भेज दिया और खुद कमरे की सफाई में जुट गया। बोरियाँ और पल्ली जिनमें मिनी का खून लग गया था, उन्हें मैं मकान के पीछे वाले कूड़ाघर में फेंक आया. और तख़्त पर पोंछा लगा दिया।
फिर मैं भी वहाँ से चला गया।
मिनी को चोदने के बाद मैं कुछ देर और अपने दोस्त के घर में रुका रहा फिर अपने घर चला गया। मिनी को भी अगले दिन दोपहर को ही निकलना था तो वह भी अपनी माँ के साथ चली गयी।
पर उसने मेरी योजना के अनुसार अपना काम कर दिया था। वह अपना लहँगा और कुछ और भी ज़रूरी सामान यहीं छोड़कर गयी थी।
मैं जानता था कि मेरा दोस्त वह सामान वापस देने मिनी के गाँव ज़रूर जाएगा. चूँकि सफर थोड़ा लम्बा है इसलिए मुझे भी अपने साथ ज़रूर लेकर जाएगा।
मेरी फूलप्रूफ़ योजना तैयार थी।
तीन ही दिन बाद मेरे दोस्त ने मुझसे मिनी के घर चलने को कहा।
मैं तुरन्त तैयार हो गया। हमें उसी दिन दोपहर की बस पकड़नी थी तो मैंने फटाफट ज़रूरी सामान पैक किया।
समय से हम लोग बस में बैठ गए। अगले दिन की वापसी थी तो मुझे मिनी के साथ जो कुछ भी करना था उसी रात को करना था। इसलिए सफर की थकान के कारण मिनी के घर में मुझे सिरदर्द या नींद न सताए इसके लिए मैंने सिरदर्द की एक गोली ले ली और बस छूटते ही सो गया।
सोने से पहले मैंने अपने दोस्त से कह दिया- यार! मेरे सिर में ज़रा दर्द हो रहा है तो मैं दवा खाकर सोता हूँ, तू जागकर सामान देखते रहना।
यहाँ मेरी योजना का पहला चरण यह था कि मिनी के गाँव पहुँचने तक सफर की थकान मेरे दोस्त को होगी जबकि मैं नींद पूरी कर लेने के कारण तरोताज़ा रहूँगा। तो मुझे मेरे मक़सद पूरा करने में आसानी रहेगी।
मिनी के गाँव तक पहुँचने में शाम के 7 बज गए थे। तब गाँवों में लोग खा-पीकर जल्दी सो जाया करते थे।
मिनी का घर बड़ा था और उसमें रहने वाले केवल 2 लोग! उसका घर जिस जगह था वहाँ केवल दो ही घर थे। आगे वाला घर एक खण्डहर था और पीछे वाला मिनी का। मुख्य सड़क से एक गली मिनी के घर की तरफ मुड़ती थी और दोनों घरों को घेरती हुई पुनः मुख्य सड़क पर मिल जाती थी। उसके आगे चारों तरफ खेत थे। उस गाँव में बिजली तो थी पर कई घरों में अभी भी चूल्हा जलता था।
मैं थोड़ा पीछे था। घर का दरवाजा मिनी ने ही खोला।
दरवाज़े पर केवल मेरे दोस्त को देखकर मिनी उदास हो गयी।
दोस्त अंदर चला गया पर मैं बाहर ही रुक गया।
जब मैं नहीं आया तो मेरे दोस्त ने मिनी से कहा- अरे, अभिनव अन्दर नहीं आया! जाकर देख तो!
यह सुनते ही मिनी ने भागकर दरवाजा खोला, सामने मैं खड़ा था।
मुझे देखते ही मिनी का चेहरा खिल गया। मिनी लाल रंग का तंग सलवार और कुर्ता पहने थी।
रात का समय था और गली सुनसान थी. तो कोई डर नहीं था इसलिए मैंने मिनी को बाहर गली में खींच लिया।
मिनी पहले तो सकपकाई. फिर मेरा इरादा भाँपकर इतनी कसकर मेरे सीने से चिपट गयी थी कि मेरा लण्ड तन गया।
मैंने मिनी के होंठों को अपने होंठों में कस दिया और अपने दोनों हाथों से उसकी कमर के दोनों उभार दबाने लगा। मिनी मेरा पूरा साथ दे रही थी। वह कसकर मुझसे चिपकती जा रही थी।
इस तरह कुछ पल उसके होंठ चूसने और उसके कुर्ते के अंदर हाथ डालकर उसके नँगे जिस्म को मसलकर मैं उससे अलग हुआ और हम दोनों अंदर आ गए।
मिनी की मम्मी मेरे और मेरे दोस्त के भोजन की व्यवस्था करने में लग गई. मिनी उनका हाथ बँटाने लगी।
मेरा दोस्त और मैं टीवी देखने लगे।
मेरे दोस्त को सफर की थकान थी और उसका सिर भी दर्द कर रहा था इसलिये वह जल्द ही ऊँघने लगा था।
मैं जहाँ बैठा था वहाँ से मैं मिनी को रसोई में देख सकता था और मिनी भी मुझे देख सकती थी। इसलिए मेरा ध्यान मिनी की ही ओर था।
मिनी का ध्यान भी मेरी ओर ही था। वह भी बार-बार मुझे देख रही थी। जैसे ही मिनी की नज़र मुझ पर पड़ती, मैं कभी उसे आँख मार देता. कभी होंठों से फ्लाइंग किस कर देता. तो वह मुस्करा देती।
फिर मैंने उसे कुछ अश्लील इशारे करना शुरू कर दिया।
मिनी ने मेरे इशारों का ज़रा भी बुरा नहीं माना. बल्कि मुझे अपलक लगातार देखे जा रही थी. उसकी आँखों में वासना तैरती जा रही थी।
खाना तैयार हो गया तो हम दोनों ने खाना खाया। खाना खाने के बाद हम सब बैठकर बातें करने लगे।
सफर की थकान के कारण मेरे दोस्त का सिरदर्द बहुत बढ़ गया था तो उसने मुझसे सिरदर्द की गोली माँगी।
मैंने गोली उसे खिला दीं।
दो बार चूल्हा जलाने और धुँए में काम करने के कारण मिनी की मम्मी को भी सिरदर्द होने लगा था। मिनी की मम्मी को भी मैंने दर्द की गोली खिला दीं।
मिनी मेरे तथा मेरे दोस्त के बिस्तर छत पर लगाने चली गयी।
यह मेरे प्लान का ही हिस्सा था। मैं जानता था कि सफर के बाद मेरे दोस्त का सिरदर्द होने लगता है। इसीलिए मैंने उसे सिरदर्द की नहीं बल्कि नींद की गोली दे दी थी।
मिनी की मम्मी को भी मैंने नींद की ही गोली दी थी। अब रात भर किसी के उठने का कोई डर नहीं था।
मेरे प्लान का यह चरण सफलतापूर्वक पूरा होने के बाद अब मेरे पास कम-से-कम दस घण्टों का समय था मिनी के साथ रंगरलियाँ मनाने के लिए।
थोड़ी देर में जब वह लौटी तब तक उसकी मम्मी और मेरा दोस्त वहीं बैठक में ही सो चुके थे।
मिनी को मैंने झपटकर अपनी ओर खींच लिया और उसके कपड़ों के अंदर हाथ डालने लगा। उसने मेरा विरोध तो नहीं किया पर अपनी मम्मी और मेरे दोस्त की तरफ देखने लगी कि कहीं उनकी नींद न खुल जाए।
मैंने उसको आश्वस्त करते हुए बताया कि इन दोनों को मैंने नींद की बड़ी वाली गोली दे दी है। अब ये दोनों सुबह से पहले नहीं उठेंगे।
यह सुनकर उसने अपने शरीर को मेरे हवाले कर दिया।
मैंने उससे कहा- अब नंगी हो जाओ, मेरी जान और अपने आशिक की प्यास बुझा दो।
वो बोली- अपनी जान को आप ही नँगी करो मेरे राजा!
मैंने उसे अपनी गोद में बैठाकर उसके कुर्ते के अंदर हाथ डालकर उसकी दोनों चूचियाँ दबाने लगा और उसकी गर्दन चूमने तथा काटने लगा।
मिनी बेहद गर्म थी और मस्त होती जा रही थी।
मैंने मिनी के बदन से कुर्ता निकाल दिया। उसने अंदर ब्रा/समीज कुछ नहीं पहना हुआ था इसलिए उसका ऊपरी जिस्म अब मेरे आगे खुल गया।
फिर वही नारी सुलभ लज्जा! उसने अपने हाथों से अपने स्तन छिपाते हुए बगल में सोई अपनी मम्मी और नीचे ज़मीन पर सोए मेरे दोस्त पर नज़र डाली।
उसके बाद धीरे से उसका पाजामा भी उसके शरीर से अलग कर दिया।
अब पूरी तरह निर्वस्त्र मिनी मेरे सामने थी। ट्यूबलाइट की रोशनी में उसका गेहुँआ रंग खिल रहा था।
मैंने उसके कान में कहा- रानी, आज तुम्हें हर तरह से प्यार करूँगा।
उसने प्यार भरी नज़रों से सहमति देते हुए अपनी आँखें बंद कर लीं।
उसके स्तन को ढके दोनों हाथों को मैंने वहाँ से हटाया और उसके दोनों चूचियों को बारी-बारी से चूसा। मैं मिनी के चूतड़ों पर हाथ रखे उसके स्तन चूस रहा था.
वह बड़े प्यार से मेरे बालों पर हाथ फिराकर मुझे अपनी तरफ भींच रही थी। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थीं- ओह मेरे अभिनव … मेरे राजा. मैं तुम्हारी हूँ … आह … और चूसो.
उसकी सिसकारियाँ तेज़ होती जा रही थीं। इतनी तेज़ आवाज़ सुनकर किसी की भी नींद खुल सकती थी। ये तो दवा का असर था कि दोनों लोग बेसुध पड़े थे।
इसके बाद जब मैंने उसकी बुर पर हाथ लगाया तो उसकी बुर बहुत गर्म हो चुकी थी और बहुत पानी छोड़ रही थी।
अभी तक मैं नँगा नहीं हुआ था। मिनी को मैंने तख्त पर उसकी मम्मी के बगल में लिटा दिया और अपने कपड़े उतारने लगा।
अपनी मम्मी के बगल में पूरी तरह नँगी पड़ी मिनी मेरी तरफ अपलक देख रही थी। केवल चड्डी पहने मैं उसके पास गया और उसे इशारा किया।
वह मेरा इशारा समझ गयी।
उसने मेरी चड्डी नीचे सरकाई और मेरे तने हुए लण्ड से खेलने लगी।
मैंने उसे लण्ड चूसने का इशारा किया। वह तुरन्त ही मेरा लण्ड अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। इस बार मैं भी उत्तेजित था तो 5 मिनट में ही मैं उसके मुँह में झड़ गया।
उसने इस बार बिना किसी झिझक के मेरा सारा माल पी लिया।
इसके बाद मैं मिनी के ऊपर ही लेट गया उसके सारे अंगों से अपने अंग चिपकाकर लेट गया। मेरा लण्ड झड़ने से सिकुड़ गया था पर मिनी अभी प्यासी थी। अपने ऊपर लिटाये हुए ही वह मेरे लण्ड को अपने हाथ से अपनी बुर पर रगड़ने लगी।
कुछ ही देर में मेरा लण्ड फिर से खड़ा हो गया। मैंने उसे टाँगें फैलाने का इशारा किया।
उसने अपनी टाँगें फैला दीं।
मैंने अपना लण्ड उसकी चूत पर टिकाया और उससे पूछा- डाल दूँ?
उसने अपनी सिर हिलाकर ‘हाँ’ का इशारा किया।
मैंने उससे फिर पूछा- डाल दूँ?
उसने फिर से वैसा ही इशारा किया।
मैंने कहा- मुँह से बोलो!
वो बोली- अब डाल भी दो न!
मैंने एक झटके से पूरा लण्ड उसकी चूत में उतार दिया। अभी उसकी चूत कसी हुई थी और एक झटके में पूरा लण्ड उतर जाने से उसे तेज़ दर्द हुआ और उसकी तेज चीख निकल गयी- उईई मम्मी ईईई!
मैंने मिनी से इशारों में पूछा- शुरू करूँ?
उसने अपने दोनों हाथों से मेरी कमर को दबाकर शुरू करने का इशारा किया।
मैंने अपने होंठों में उसके होंठ भरकर चूसना और धीरे-धीरे अपने लण्ड को मिनी की चूत में झटके देना शुरू किया। मिनी मेरा पूरा साथ दे रही थी। अपनी दोनों टाँगों को उसने मेरी कमर के चारों के तरफ लपेट लिया था. और अपने दोनों हाथ मेरी पीठ और सिर पर फिरा रही थी।
अब मैंने झटकों की गति बढ़ा दी। मेरे झटकों से तख्त भी बुरी तरह से हिल रहा था. पर ये दवा का ही असर था कि मिनी की मम्मी की नींद नहीं खुल रही थी। वे गहरी नींद सो रही थीं और उन्हीं के बगल में उन्हीं की बेटी चुद रही थी।
पूरा कमरा मिनी की चीखों से गूँज रहा था- अभिन…व … और करो ओओ … बहुत अच्छा लग रहा है. ओअह … चोदते रहो.
आधे घण्टे धुआँधार चुदाई के बाद मिनी का शरीर अकड़ने लगा और कुछ ही पलों में वह निढाल हो गयी।
थोड़ी ही देर बाद मेरा भी निकलने वाला था। मैं मिनी की चूत में ही झड़ गया और उसकी पूरी चूत अपने माल से भर दी।
मैं भी उसके ऊपर निढाल होकर गिर गया और देर तक हम दोनों ऐसे ही एक दूसरे से चिपके पड़े रहे।
मैंने तख्त पर लेटकर मिनी को अपने ऊपर कर लिया।
मिनी मेरे होंठ चूस रही थी।
मैंने उससे पूछा- मज़ा आया?
मिनी बोली- हाँ, मेरे राजा!
मैं- और चुदोगी!
मिनी शर्माते हुए- ह्म्म्म!
मैं- कितनी बार?
मिनी- जितनी बार आप चाहें, मेरे राजा! आज से मैं आपकी ही हूँ। आप जब भी चाहें, जैसे भी चाहें मेरे साथ खेल सकते हैं।
यह सुनकर मैंने मिनी को गले से लगा लिया और उससे बाहर चलने का इशारा किया।
मिनी उठकर कपड़े पहनने लगी तो मैंने उसे रोक दिया।
मैंने कहा- आज की रात हम दोनों ऐसे ही नँगे रहेंगे।
मेरी बात सुनकर मिनी रोमाँचित हो उठी. तब तक मैंने उसकी बगल में हाथ डालकर उसका एक स्तन पकड़ा और उसे अपने साथ छत की तरफ ले जाने लगा।
मिनी बिना किसी संकोच के मेरे साथ चल दी।
छत का रास्ता सँकरा होने के कारण दोनों साथ नहीं चढ़ सकते थे इसलिए आगे मिनी चढ़ी और उसके पीछे-पीछे मैं चढ़ा। चढ़ते समय मैं मिनी की बलखाती गांड को देख रहा था. और सोच रहा था कि अबकी इसकी गांड भी मारनी है।
वहाँ दूर तक कोई भी और घर मिनी के घर से ऊँचा नहीं था इसलिए यहाँ भी हमें कोई भय नहीं था। हम-दोनों आराम से अपनी चुदाई-लीला यहाँ भी जारी रख सकते थे।
उसकी छत पर एक पतला गलियारा था जो घर के एक हिस्से की छत को दूसरे हिस्से की छत से जोड़ता था। उस गलियारे के दोनों तरफ लगभग ढाई-ढाई फुट ऊँची मुँडेर थी जहाँ से नीचे का आँगन दिखता था।
यही गलियारा हमारी चुदाई का अगला अखाड़ा बनने वाला था.
पर उस समय तक मुझे इस बात का अंदाज़ा नहीं था।
उसी गलियारे से होते हुए हम उस जगह पर आ गए जहाँ मिनी ने हमारे सोने के लिए बिस्तर लगाए थे।
बिस्तर पर बैठकर मैंने चाँदनी में छत का मुआयना किया। छत पर काफी सारा सामान पड़ा था, जैसे- कपड़े फैलाने की डोरी, बन्दर भगाने के लिए लाठियाँ, ईंटों का ढेर, कई सारे मटके इत्यादि।
हम दोनों पालथी मारकर बैठे थे। मिनी मेरे सामने थी और मैं चाँद की रोशनी में उसका जिस्म निहार रहा था।
फिर मैंने मिनी से उसकी गांड मारने को कहा तो उसने मना नहीं किया।
उसने मेरे लण्ड को अपनी मुट्ठी में पकड़कर उसे हिलाना शुरू किया तो वह फ़ौरन ही खड़ा हो गया।
तब मैंने मिनी से घोड़ी बनने को कहा।
मिनी घोड़ी बन गयी।
मैंने उसकी गांड के छेद में लण्ड डालने का प्रयास किया। उसकी गांड बेहद कसी हुई थी इसलिए उसे बहुत दर्द हुआ।
वो ज़ोर से चिल्लाई और मुझे रुकना पड़ा।
कई बार प्रयास करने पर भी यही हाल रहा तो मिनी डर गई और उसने गांड मरवाने से बिल्कुल मना कर दिया।
मेरे बहुत ज़ोर देने पर जब वह नहीं मानी तो फिर मैंने पीछे से ही उसकी चूत में ही लण्ड डालकर उसे कुतिया बनाकर उसकी चुदाई शुरू कर दी।
चाँद की दूधिया चाँदनी में नहाए हम-दोनों एक-दूसरे में समाए हुए थे। मैं पीछे से उसकी चूत में लण्ड डालकर उसकी पीठ से चिपककर उस पर लेट गया. मैं अपने हाथों से उसकी दोनों चूचियाँ दबाने लगा और उसके कन्धों पर चूमने लगा।
मिनी अपनी गांड से पीछे धक्के देकर मुझे शुरू होने का इशारा करने लगी।
कुछ पल इसी तरह लेटे-लेटे धीरे-धीरे धक्के देने के बाद मैं सीधा हुआ और अपने हाथों को उसके कन्धों से पीठ और पसलियों पर फिराते हुए उसकी कमर तक लाया. और उसकी कमर को कसकर पकड़ लिया।
अब मैंने अपने धक्के तेज कर दिए. मिनी की सिसकारियाँ गूँजने लगीं।
कई बार उत्तेजना में मैं उसके बाल भी खींच लेता था तो सिसकारी में उसकी चीख भी मिल जाती।
लगभग मैंने आधे घण्टे तक उसे चोदता रहा।
मिनी अब तक दो बार झड़ चुकी थी। फिर मैं भी उसकी चूत में ही झड़ गया।
मेरे झड़ते ही वह बिस्तर पर पेट के बल लेट गई और उसी के ऊपर मैं भी लेट गया।
मुझसे दो बार चुदने के बाद मिनी बेहद खुश थी।
मैं भी खुश था. पर मुझे अभी तक उसकी गांड न मार पाने का मलाल था।
कुछ देर वैसे ही लेटे रहने के बाद मैं मिनी के बगल में उसकी पीठ से चिपककर लेट गया. अपने पैर मैंने उसके पैरों पर रख दिये तथा अपने हाथ से उसके स्तनों के साथ खेल करने लगा।
मिनी और मैं इसी तरह लेटे बहुत देर तक बातें करते रहे।
उसने मुझे अपने परिवार के बारे में बताया.
पिता के गुजरने के बाद खराब होती आर्थिक स्थिति के बारे में बताया. जिसके कारण उसकी पढ़ाई में भी बाधा आयी।
उसने बताया कि वह आगे पढ़ना चाहती है पर आर्थिक स्थिति उसे ऐसा करने से रोक रही है. शहर में रहना-खाना कॉलेज की फीस इत्यादि सब कैसे होगा. किसी रिश्तेदार का एहसान वह नहीं लेना चाहती थी।
मैंने उसे सांत्वना दी कि उसका आगे पढ़ाई जारी रखने में मैं उसकी बहुत मदद कर सकता हूँ। वह केवल कॉलेज की फीस की व्यवस्था कर ले, बाकी सब मुझ पर छोड़ दे।
मेरी बातें सुनकर उसे बहुत संतोष हुआ।
इसी तरह हम बहुत देर तक बातें करते रहे। मैंने उसके पूरे शरीर के हर भाग को खूब चूमा-चाटा और महसूस किया।
उसने भी मेरे पूरे शरीर को चूमा।
फिर वह मेरे लौड़े से खेलने लगी।
मैंने उसे ऊपर खींचा और उसकी गांड पकड़कर खींचकर उसे अपने नज़दीक किया. तब मैंने उसकी चूत में अपना लण्ड छुआ दिया और फिर उसके होंठ चूसने लगा।
वह भी मुझे अपनी बांहों में जकड़े मेरा साथ देने लगी और अपनी चूत को मेरे लण्ड पर रगड़ने लगी।
हम दोनों एक-दूसरे से चिपके मचल रहे थे। लग रहा था कि यह रात कभी खत्म न हो।
तभी मेरे मन में एक विचार कौंधा।
मैंने उससे पूछा- क्या एक नए आसन में चुदाई करोगी?
वो तुरन्त तैयार हो गयी।
मैंने उससे उकड़ूँ बैठने को कहा.
वो बैठ गयी।
फिर वहाँ पड़ी कपड़े फैलाने वाली सुतली से उसकी एक बाँह को एक जाँघ से और दूसरी बाँह को दूसरी जाँघ से बाँध दिया।
बाँधते समय मैंने ध्यान रखा कि उसे दर्द बिल्कुल भी न हो। फिर मैं उसे उठाकर उसी गलियारे में ले आया जो दो छतों को जोड़ता था।
फिर मैंने बन्दर भगाने वाली लाठी उठाई और उसकी दोनों बाँहों के बीच से निकाल दी और लाठी के दोनों सिरे गलियारे की दोनों मुँडेरों पर रख दिए।
अब मिनी दोनों मुँडेरों के बीच हवा में झूल रही थी।
आप लोगों ने दो हंसों और एक कछुए की कहानी अवश्य सुनी होगी जिसमें दोनों हंस अपने मित्र कछुए को डण्डे की सहायता से लटकाकर उड़ते हुए दूसरे स्थान पर ले गए थे।
मिनी बिल्कुल उसी कछुए की तरह दोनों मुँडेरों के बीच लाठी से लटकी थी।
वो समझ नहीं पा रही थी कि मैं क्या करने जा रहा हूँ।
इतना करके मैं मिनी के सामने खड़ा हो गया. अब मैंने उसे लण्ड चूसकर खड़ा करने को कहा। मिनी वैसे ही लटकी लण्ड चूसने लगी।
बहुत देर का बैठा लण्ड खड़ा हो गया।
फिर मैंने मिनी की चूत में उँगली करके उसका पानी निकाला।
अब मैंने मिनी की गांड अपनी तरफ कर ली और उस सारे पानी को मैंने मिनी की गांड के छेद पर लगा दिया।
अब मिनी को समझ में आ गया कि मैं क्या करने वाला हूँ।
वह मुझसे उसे छोड़ देने को मिन्नतें करने लगी।
मैंने उसे समझाया और कहा- परेशान न हो। कुछ नहीं होगा।
मिनी इस बन्धन से छूट नहीं सकती थी। वह पूरी तरह से मेरी दया पर निर्भर थी। पर मुझे उसकी गांड मारनी ही थी।
मैंने उसकी गांड के छेद पर अपना लण्ड टिकाया और खूब सारा थूक उसकी गांड पर डाल दिया।
मिनी ‘नहीं! नहीं! अभिनव नहीं!’ करती रही पर मैंने उसकी एक न सुनी।
थोड़ा आगे-पीछे करने के बाद मैंने एक तेज़ धक्का लगाया और पूरा लण्ड उसकी गांड में घुस गया।
मिनी के मुँह से बहुत जोर की चीख निकली- मर गयी ईयी … निकालो इसे बाहर!
और वह रोने लगी.
पर मैं कहाँ सुनने वाला था! मैंने उसी हालत में रुककर मिनी को थोड़ा स्थिर होने दिया।
मिनी लगातार रोये जा रही थी और मुझसे लण्ड निकाल लेने की विनती कर रही थी। मैं उसकी चूची दबाना, उसके बदन को चूमना-चाटना जारी रखकर उसे गर्म करता रहा।
लगभग दस मिनट के बाद जब उसका दर्द कुछ कम हुआ तब मिनी ने खुद अपनी गांड मेरे लण्ड की तरफ धकेली।
मैं समझ गया। फिर मैंने उसके धक्के लगाना शुरू कर दिया। हर धक्के के साथ मेरा लण्ड उसकी गांड की गहराई में उतरता जा रहा था।
मिनी की सिसकारियाँ लेती जा रही थी- आह … आअह … मेरे अभिनव. और तेज़ करो न! फाड़ दो इसको!
पंद्रह मिनट बाद मैंने उसकी गांड में अपना माल भर दिया और उसके बाद मिनी के बन्धन खोल दिये।
मिनी से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था। वह बड़ी मुश्किल से घुटनों के बल रेंगकर बिस्तर तक आयी और पस्त होकर लेट गयी।
मैं उसके पास गया और उसकी गोल-गोल कमर पर हाथ फेरते हुए बोला- अब आज से तू मेरी रखैल।
मिनी ने कोई जवाब नहीं दिया।
हम दोनों 4 घण्टे से भी ज़्यादा समय से छत पर थे।
तो मैंने मिनी से नीचे चलने को कहा।
हम दोनों नीचे आ गए।
नीचे आकर पहले मैं टॉयलेट गया और फिर अपना लण्ड धोया.
उसके बाद मिनी भी टॉयलेट गयी और उसके बाद उसने भी अपनी चूत धोयी।
फिर हम दोनों कमरे में आ गए जहाँ मिनी की मम्मी और मेरा दोस्त दोनों कुम्भकर्ण की नींद सो रहे थे।
मैं वहीं दीवान पर बैठ गया। मिनी मेरे बगल में मुझसे सटकर बैठ गयी।
मैंने उसके कन्धे पर हाथ रखा और धीरे-धीरे पीठ पर हाथ फिराते हुए नीचे कमर तक सहलाने लगा।
फिर मैंने उसको अपनी गोद में बिठा लिया, और उससे कहा- अब तुम करो।
मिनी मेरी दोनों बगलों के दोनों तरफ पैर डालकर मेरी गोद में बैठ गयी और अपना सिर मेरी छाती पर रखकर मुझसे चिपक गयी।
मैंने महसूस किया कि वह सिसक रही है।
उसका चेहरा ऊपर उठाकर मैंने अपनी हथेलियों में थामा तो देखा कि उसकी दोनों आँखों से गंगा जमना बह रही हैं।
पहले तो मुझे लगा कि उसकी गांड दर्द कर रही होगी।
पूछने पर वह एकदम से भावुक होकर बोली- तुमने मेरी आज की रात एक यादगार बना दी अभिनव! आज की रात मुझे ज़िन्दगी भर याद रहेगी। हाँ, ये मिनी आज से तुम्हारी रखैल है। तुम जब चाहो, जैसे भी चाहो मिनी के साथ खेल सकते हो।
यह कहकर वह मुझसे चिपक गयी।
मैंने भी उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए उससे कहा- मैं भी हर कदम पर तुम्हारा साथ दूँगा, मिनी।
मेरी बात सुनकर मिनी मेरी आँखों में अपनी आँखें डालकर मुझे देखने लगी।
मैंने धीरे-धीरे उसे अपने नज़दीक खींचा और उसके होंठों से अपने होंठ मिला दिए।
धीरे धीरे चुम्बनों में कामुकता छाने लगी और मिनी मेरे शरीर से कसकर चिपककर मेरे होंठ चूसने लगी। उसकी चूचियाँ मेरे सीने से दब रही थीं। मैं उसकी कमर की गोलाइयों को थामकर उन्हें अपनी ओर खींचकर मिनी की चूत को अपने लण्ड के ऊपर रगड़ रहा था।
फिर मैंने अपने हाथ उसकी पीठ के पीछे बाँध लिए और वह मेरे हाथों पर झूल गयी.
तब मैंने उसकी चूचियों को अपने मुँह में भरकर चूसना शुरू किया।
वह अपने दोनों हाथों से मुझे अपनी चूचियों में भींच रही थी।
फिर उसने अपने हाथ से मेरा लण्ड अपनी चूत में डाला और अपनी कमर से ज़ोर का धक्का लगाया। मेरा लण्ड उसकी चूत की गहराई में उतर गया।
मैंने उसकी कमर को अंदर की तरफ खींचकर उसे कमर चलाने का इशारा किया।
उसने अपनी कमर के धक्के तेज़ कर दिए।
थोड़ी ही देर में वह झड़ गयी और निढाल होकर मेरे ऊपर गिर गयी।
मैंने उससे कहा- मेरा अभी नहीं हुआ है।
तो उसने कुछ झटके मारने की कोशिश की. मगर थकान के कारण और उसका हो जाने के कारण उससे ज़्यादा झटके नहीं लगे।
मेरा लण्ड पूरा तना हुआ था और उसकी चूत में घुसा हुआ था। मैं मिनी को उसी स्थिति में लेकर खड़ा हुआ और फिर कमरे की फर्श पर उसे लिटाकर उसके ऊपर लेट गया। इस दौरान मेरा लण्ड उसकी चूत के अन्दर ही रहा।
अब मैंने मिनी के दोनों हाथ उसके सिर पर लगाये और धक्के लगाने शुरू कर दिए। मिनी ने भी अपनी टाँगें मेरी कमर के इर्द गिर्द लपेट दीं।
मेरा जल्दी नहीं होना था क्योंकि रात भर में मैं कई बार चुदाई कर चुका था. मिनी भी निढाल सी पड़ी रही। कमरे के एक तरफ मेरा दोस्त बेसुध पड़ा था और दूसरी तरफ तख्त पर मिनी की मम्मी और बीच में फर्श पर हम दोनों नंगे पड़े थे।
लगभग आधे घण्टे तक धक्के लगाने के बाद मैं मिनी की चूत के अन्दर ही झड़ गया। झड़ने के बाद भी मेरा लण्ड ढीला नहीं हुआ और काफी समय तक उसकी चूत के अंदर ही रहा।
जब मैंने उसे खींचकर निकाला तब भी खड़ा ही था।
मैंने मिनी से घोड़ी बनने के लिए कहा, मिनी घोड़ी बन गयी तो मैंने लण्ड उसकी गांड में डालकर फिर से उसकी गांड मारी।
इस बार मिनी ने बिना किसी न-नुकुर के अपनी गांड मरवाई।
रात भर में चार बार चुदकर मिनी थक गयी थी.
पर न उसका मन भरा था न मेरा।
ऐसा मौका शायद फिर नहीं मिलता इसलिए मिनी भी पूरा मज़ा ले लेना चाहती थी.
और इसी वजह से वह मुझे किसी भी बात के लिए बिल्कुल मना नहीं कर रही थी।
पर हम-दोनों थक गए थे और किसी भी वक़्त सो सकते थे। इसलिए मेरे कहने से हम दोनों ने बेमन से अपने अपने कपड़े पहन लिए।
तब तक चार बज चुके थे।
फिर मैंने मिनी को गर्भनिरोधक गोली दी जो मैं अपने साथ लाया था. उसे कहा- इसे खा ले तो कुछ खतरा नहीं होगा।
फिर मैं अपने दोस्त के बगल में जाकर लेट गया और मिनी भी अपनी मम्मी के पास जाकर लेट गयी।
जल्दी ही हम दोनों ही सो गए।
सुबह सात बजे मेरी ही नींद सबसे पहले खुली। देखा सब लोग सो रहे थे।
मैं तुरन्त उठा और मिनी को जगाने की कोशिश की पर मिनी गहरी नींद में सोई थी।
वह नहीं उठी।
तो फिर मैं होकर नहा-धोकर ताज़ा हो गया। मिनी की मम्मी और मेरा दोस्त आठ बजे के बाद सोकर उठे और मिनी को उसकी मम्मी ने जब बहुत जगाया तो दस बजे उठी।
किसी को क्या पता कि हम-दोनों ने रात भर क्या गुल खिलाये थे।
हम सबने दोपहर का खाना साथ खाया तभी मैंने मिनी की मम्मी से उसकी पढ़ाई की बात चलाई।
मैंने उनसे कहा कि वे चिन्ता न करें। सब व्यवस्था हो जाएगी।
फिर थोड़ी देर बाद हम लोग वापसी के लिए रवाना हो गए।
हमारे वापस जाने के समय मिनी बहुत ज़्यादा उदास थी। अगर उससे कुछ भी बोलता तो वह रो पड़ती इसलिए आँखों ही आँखों में उससे विदा लेकर मैं चल दिया।
बाद में मिनी की मम्मी ने उसे आगे की पढ़ाई के लिए शहर भेज दिया।
यहाँ हमारा एक फ्लैट भी था जो खाली ही पड़ा रहता था। उसकी चाबी मैंने अपने घर वालों से बात करके अपने दोस्त को दिलवा दी।
वही फ्लैट अगले पाँच साल मिनी का घर रहा जब तक कि उसने स्नातक फिर परास्नातक किया।
मिनी पाँच वर्षों तक मेरी रखैल रही और तब तक मैंने मिनी को लगभग रोज़ ही चोदा। हम लोग पूरे-पूरे दिन नंगे रहते और हर जगह, हर तरह से चुदाई करते।
जब तक उसकी शादी नहीं हो गयी मैंने उसे अनगिनत बार चोदा।
उसकी सबसे अच्छी बात यही थी कि उसे चाहे जिस भी तरह चोदो पर वह कभी मना नहीं करती थी।
उसने मेरी कई फंतासियों को भी पूरा करने में मेरा सहयोग किया।
अब वह शादीशुदा है, दो बच्चों की माँ है।
हमारे पास एक दूसरे के नम्बर भी हैं पर बात नहीं होती है।
मैं उसकी शादीशुदा ज़िन्दगी बिल्कुल भी दखल नहीं देता हूँ. पर आज भी जब उसका कानपुर आना होता है तब हम मिलते हैं और चुदाई भी करते हैं।
आज आप सबको अपनी कामुकता की हिंदी सेक्स स्टोरी सुनाना चाहता हूँ कि किस तरह मैंने अपने दोस्त के भाई की शादी में उसी के एक रिश्तेदार की बेटी को चोदा।
ये मेरी पहली कामुकता हिंदी सेक्स स्टोरी है। उम्मीद है कि आप सबको पसंद आएगी।
यह हिंदी सेक्स स्टोरी लगभग 20 साल पुरानी है। जब मेरे दोस्त के बड़े भाई की शादी हुई थी।
आप सब तो जानते ही हैं कि शादी में बड़ा चहल-पहल का माहौल होता है. ऐसा ही हमारे यहाँ भी था। हम सब खुशियाँ मना रहे थे।
शादी वाले घर में पचास काम होते हैं। मैंने अपने ज़िम्मे लगभग सभी काम लेकर एक तरह से अपने दोस्त को किसी भी ज़िम्मेदारी से मुक्त कर रखा था। और इसी कारण मेरी वहाँ पूछ भी बहुत हो रही थी।
तभी मैंने देखा कि मेरा दोस्त किसी लड़की से बात कर रहा है। लड़की की पीठ मेरी तरफ थी। गज़ब का फिगर था उसका, पीछे से लड़की एकदम मस्त माल लग रही थी।
तो मैं भी ठरकपन में कूदता हुआ वहाँ पहुँच गया।
मेरे दोस्त ने मेरा परिचय उससे करवाया कि उनके रिश्तेदार की बेटी है, गाँव से आई है। उसका नाम मिनी (बदला हुआ नाम) था। उसके पिता नहीं थे तो माँ के साथ ही आई थी। उम्र 19-20 साल की रही होगी।
मिनी देखने में तो साधारण ही थी, चेहरा भी बस ठीकठाक ही था, बातचीत में भी देहातीपन था। पर उस समय तक मुझे नहीं मालूम था कि यही लड़की जल्द ही मेरे लौड़े के नीचे आने वाली थी। तब तक मेरे मन में उसके प्रति कोई भावना न थी। मेरा नाम उस घर में इतनी बार लिया जा रहा था कि उसने मेरा नाम सुन रखा था।
भाई की बारात आगरा से थोड़ी दूर एक गाँव में जानी थी। हम सब बस से निकले, रास्ते भर मस्ती-मज़ाक चलता रहा।
इस दौरान मैंने गौर किया कि मिनी ज़्यादातर मेरे आसपास ही रहने की कोशिश कर रही थी। वह ज़्यादातर मेरे पास ही बैठती और किसी न किसी बहाने मुझे छू लेती। जब कभी उससे निगाहें मिल जातीं तो मानो अपनी आँखों से मूक निमन्त्रण दे रही होती।
उसकी इन सब हरकतों के कारण मेरे अंदर की कामुकता जाग गयी. फिर मैं भी उसे चोदने की योजना बनाने लगा।
लड़कियाँ चाहे जितना भी पहल कर लें. पर शर्माती तो हैं ही. वहीं पुरुषों को छेद के अलावा और कुछ नहीं दिखता।
तो अगली बार जब वो मेरे बगल में बैठी तो मैंने मौका देखकर उसका हाथ पकड़ और फिर देर तक पकड़े रहा।
एक सेकण्ड के लिए वह थोड़ा कसमसाई फिर मुस्कराने लगी। इससे मेरी हिम्मत और बढ़ गयी।
अब मैं अपनी कोहनी से उसकी चूची हल्के से दबा देता। वह भी इतने पास सरक आयी कि मुझे उसकी चूची छूने के लिए ज़रा भी कोशिश न करनी पड़े. लगातार उसकी चूची मेरी कोहनी से छू रही थी।
फिर मैंने अपना हाथ उसकी जाँघ पर रख दिया और धीरे-धीरे ऊपर की ओर सरकाने लगा।
उसकी आँखें मादक होती जा रही थीं। फिर मैंने उसकी बुर छूने के इरादे से सलवार के ऊपर से ही उसकी बुर पर हाथ रख दिया। उसकी बुर भयंकर गर्म थी तथा सलवार गीली।
शायद उसकी बुर पानी छोड़ रही थी।
मैंने उसकी ओर देखा. उसकी आँखों में भयंकर कामुकता थी। मैं समझ गया कि उसका अपने मन पर नियन्त्रण नहीं है।
इस हालत में हमें कोई देख लेता तो शक करता इसलिए फिर मैं थोड़ा सँभलकर बैठ गया।
रास्ते में तो इससे ज़्यादा कुछ हो भी नहीं सकता था. पर मौका देखकर मैं जब तब उसकी चूचियों को दबा देता या उसकी कमर की गोलाइयों को महसूस कर लेता।
वह बहुत खुश हो जाती।
बारात को अपनी मंज़िल पहुँचने में शाम हो गयी थी। हमें एक धर्मशाला में ठहराया गया।
जल्द ही कार्यक्रम शुरू हो जाने वाले थे। हम लोगों के पास तैयार होने को बहुत कम समय था। सुबह जल्दी ही वापसी के लिए भी निकलना था।
सब लोग तैयार होने के लिए अपने-अपने कमरों में चले गए। स्त्रियों की व्यवस्था निचली मंज़िल में तथा पुरुषों की व्यवस्था ऊपरी मंज़िल में थी।
मैं मुँह-हाथ धोकर फटाफट तैयार हो गया फिर धर्मशाला की छत पर टहलने निकल गया। तब तक 7:30 बज गए थे तथा अँधेरा हो गया था।
छत पर ही एक छज्जा आँगन की तरफ था। मैं उसी तरफ खड़ा था कि तभी मैंने देखा कि मिनी ऊपरी मंज़िल की तरफ आ रही है। वह सफेद लहँगा पहने हुए थी। सज-धजकर बहुत अच्छी लग रही थी। मुझे लगा कि किसी से कुछ सामान लेने आ रही होगी पर उसे देखते ही मेरे अरमान फिर से मचलने लगे और मेरा लण्ड खड़ा होने लगा। मुझे लगा कि अब मिनी की कुंवारी बुर में कामुकता हिंदी सेक्स स्टोरी लिखी जा सकती है.
तभी मैंने देखा कि वह ऊपरी मंज़िल में न जाकर छत की तरफ आ रही है। मेरे मन में लड्डू फूटने लगे। मैं सीढ़ियों की तरफ ही जाकर खड़ा हो गया।
अँधेरे के कारण छत पर कोई मुझे नहीं देख सकता था। जैसे ही वह छत पर आई मैं उसके सामने आ गया। मुझे देखकर उसे कोई आश्चर्य ही नहीं हुआ। मुझे ऐसा लगा कि जैसे उसे मालूम हो कि मैं यहाँ खड़ा उसका इंतज़ार कर रहा हूँ।
मैंने उसका हाथ पकड़ा और उसे लेकर छत पर ऐसी जगह आकर खड़ा हो गया जहाँ से हम लोग सीढ़ियों की तरफ आराम से नज़र भी रख सकते थे. और किसी के ऊपर की तरफ आने की स्थिति में हम-दोनों समय रहते अलग भी हो सकते थे।
आसपास भी कोई इतनी ऊँची इमारत भी नहीं थी जहाँ से हमें कोई देख सके। इसलिए उस तरफ से हमें कोई डर नहीं था।
जल्दी ही नीचे भी जाना था वरना कोई हमारी खोज में ऊपर भी आ सकता था। इसलिए मैंने समय बिल्कुल भी न गँवाते हुए उसे अपनी तरफ खींच लिया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये और उन्हें चूसने लगा।
वह पूरा साथ दे रही थी।
उसके होंठ चूसते-चूसते मेरे हाथ अपने आप ही उसकी कमर पर चले गए और उसकी दोनों गोलाइयों को दबाने लगे।
वह एकदम बेल की तरह मुझसे लिपट गयी थी। मैं उसकी सारी लिपस्टिक चूस गया और फिर उसके पूरे चेहरे को चूमने लगा।
इसके साथ ही मैंने उसकी चोली के हुक खोल दिये और उसकी दोनों चूचियाँ मेरे सामने नुमाया हो गई। चोली बहुत तंग होने के कारण उसने ब्रा नहीं पहनी हुई थी।
मैं उसके गले तथा छाती को चूमने में लगा था और वह मेरी पैंट के ऊपर से मेरा लण्ड टटोल रही थी।
अँधेरे में कुछ साफ दिख तो रहा नहीं था तो हम दोनों बस एक-दूसरे के अंगों से खेल रहे थे।
मैंने उसकी चूचियों को दबाना शुरू किया और दबाते-दबाते उन्हें मसल डाला. उसके मुँह से एक कराह निकल गयी। फिर मैंने उसका लहँगा ऊपर करके उसकी पैंटी के अंदर से उसकी बुर में उँगली डाल दी।
मिनी की अनछुई बुर बेहद कसी और गीली थी। उँगली बहुत अंदर तक नहीं जा रही थी पर इतने में ही मिनी उत्तेजना में पागल हुई जा रही थी।
उसकी बुर में मैंने उँगली आगे-पीछे करनी शुरू की तो मिनी ने मेरा चेहरा अपनी छाती में कसकर भींच लिया और अपनी बुर में उँगली जाने का मज़ा लेने लगी। उसकी सिसकारियाँ तेज़ और मादक होती जा रही थीं. वो बेतहाशा मेरे होंठों को चूसने में लगी थी।
मैंने उसकी पैंटी उतारकर उसकी दोनों टाँगें फैला दीं. थोड़ी देर तक मैं उसकी बुर को रगड़ता-मसलता रहा और उसकी चूचियों को दबाता रहा।
मिनी अपना हाथ मेरी पैंट के ऊपर से मेरे लण्ड पर रखे थी। उसने अपने हाथ से मेरे लण्ड पर दो थपकियाँ लगाईं।
मैं उसका इशारा समझ गया और अपनी चैन खोलकर लण्ड निकाला और मिनी के हाथ में दे दिया।
लण्ड एकदम कड़क हो रहा था, मैंने मिनी से कहा- तुम्हारी यह बहुत प्यासी है.
तो वो बोली- इसकी प्यास बुझा दो।
मैंने कहा- इसकी प्यास तुम्हारी बुर में जाकर बुझेगी।
इस पर मिनी मुस्कराकर मेरे एकदम नज़दीक आ गई और मेरे लण्ड से अपनी बुर को रगड़ने लगी। उसकी बुर टपकने लगी थी।
मैंने उसे घुटनों पर बैठाया और लण्ड को उसके मुँह के पास ले जाकर उसे चूसने को कहा।
मिनी ने लण्ड चूसने से मना कर दिया। मैंने थोड़ा ज़बरदस्ती करते हुए उसके होंठों पर अपना लण्ड लगाकर फिरा दिया पर उसने अपने होंठ नहीं खोले।
वह बस लण्ड को कसकर पकड़े रही और दबाती रही।
मेरा रस जो उसके होंठों पर लग गया था उसे उसने मेरे कहने से अपनी जीभ से चाट लिया।
वह बार-बार मुझसे बुर में लण्ड डाल देने की मिन्नत-सी कर रही थी। पर मैं उसे समझा रहा था कि यह जगह इस काम के लिए बहुत ठीक नहीं है.
लेकिन वासना उसके सिर पर इतनी सवार हो गयी थी कि उसे मौके की नज़ाक़त का ज़रा भी ध्यान नहीं था।
वहाँ कहीं ऐसी जगह नहीं थी जहाँ पर उसे चोद सकूँ।
ऊपर से वह सफेद लहँगा पहने थी, यदि खून निकलता तो सारा लहँगा खराब हो सकता था।
हम लोग इस तरह लगभग 20 मिनट तक मस्ती करते रहे।
नीचे आँगन में लोगों की आवाजाही कम होती जा रही थी। कोई धर्मशाला में बाहर से ताला लगाकर न चला जाये इस डर से कुछ समय बाद मैंने उसे अलग होने तथा कपड़े ठीक करने को कहा।
मिनी मुझे छोड़ना ही नहीं चाहती थी. वह मुझसे बुरी तरह चिपकी हुई थी. वो अपने अंगों को मेरे शरीर से छुआ रही थी. तो मैं ही उसे छोड़कर दूर हट गया तथा सीढ़ियों पर रोशनी में आकर खड़ा हो गया।
शायद मिनी को लग रहा था कि मैं वापस आकर अपना मिलन पूरा करूँगा. इसलिए मिनी कुछ देर वहीं खड़ी रही.
पर जब मैं न आया तो उसने भी अपने कपड़े ठीक किये और सीढ़ियों पर आ गयी जहाँ मैं खड़ा था।
हम दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा।
मिनी के चेहरे पर गहरी मायूसी तथा आँखों में आँसू थे।
मैंने उसे दिलासा दिया और समझाया कि वह चिंता न करे। जल्द ही अपना मिलन पूरा करूँगा।
यह सुनकर मिनी मुझसे कसकर लिपट गयी तथा मेरे होंठों पर उसने एक भरपूर चुम्बन दिया।
इसके बाद हम नीचे आ गए।
मुँह-हाथ धोकर मैं शादी के कामकाज में लग गया। वहाँ फिर ज़्यादा कुछ नहीं हो पाया. मिनी भी मेरे आसपास ही मँडराती रही.
पर मैं दोस्तों के बीच इतना मशरूफ रहा कि उसकी तरफ ध्यान नहीं दे सका।
सुबह जल्दी ही वापसी भी होनी थी।
वापसी में मेरे दोस्त ने मुझसे भाई-भाभी (नई वाली) के साथ कार से ही चले जाने को कह दिया तो मैं कार से वापस आ गया।
रास्ते में भाभीजी से भी हल्की फुल्की मज़ाक कर देता था तो भाभीजी भी मुस्करा देतीं।
इन भाभीजी को भी मैंने बाद में चोदा पर वह कहानी बाद में सुनाऊँगा।
घर पहुँचकर भाई साहब भाभी को स्त्रियों के ठहरने की जगह पर छोड़कर नीचे आ गए और मेरे साथ टी वी देखने लगे।
अत्यधिक थका होने के कारण मुझे झपकी लग गयी।
लगभग एक घण्टे के बाद जब मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि उस कमरे में मेरे तथा मिनी के अलावा और कोई नहीं है।
मिनी मेरे बिल्कुल बगल में बैठी थी और शिकायत भरी नजरों से मुझे देख रही थी क्योंकि मैं उसे बताकर नहीं आया था।
मिनी को सांत्वना देने के लिए मैंने अपने हाथ से उसकी चूची को दबाना शुरू कर दिया। वो अपलक मेरी ओर शिकायती नज़रों से देखे जा रही थी।
धीरे-धीरे उसकी आँखें भी नशीली होने लगीं.
तभी बाहर कुछ सामान रखने की आवाज़ें आईं। हम लोग समझ गए कि शादी में मिला सामान रखवाया जा रहा है।
मिनी भी मेरे पास से हट गई और मैं भी थका होने के कारण करवट बदलकर सो गया।
फिर मेरी आँख लगभग 2:30 बजे खुली। आसपास देखा तो सब लोग बड़ी गहरी नींद में सो रहे थे।
मैं उठा और हर कमरे का मुआयना किया। हर कमरे में आदमी या औरतें अस्त-व्यस्त गहरी नींद सो रहे थे।
सभी लोग 24 घण्टों से भी ज़्यादा समय तक लगातार जागे थे इसलिए सबको गहरी नींद आ जाना कोई असामान्य बात नहीं थी।
जब मुझे तसल्ली हो गयी कि सब लोग बहुत गहरी नींद में हैं तब मैंने मिनी को ढूँढ़ा।
मिनी एक कमरे में 5-6 लड़कियों के साथ सोई पड़ी थी। पहले मैंने हर लड़की को एक-एक मिनट तक निहारा ताकि यह पक्का हो जाये कि सब वास्तव में सो रही हैं।
तसल्ली हो जाने पर मैं मिनी के पास आकर बैठ गया। उसे हिलाकर उठाने की कोशिश की।
उसकी चुदाई का बढ़िया मौका था इसलिए उसे उठाना ज़रूरी था. पर वह उठ नहीं रही थी।
फिर मैंने एक जोखिम उठाया। मैंने उसका लहँगा सरकाकर उसकी कमर से ऊपर कर दिया फिर उसकी पैंटी भी उतारकर नीचे एड़ियों तक कर दी।
मैंने आराम से उसकी दोनों जाँघों को चाटा।
इतना करने से भी मिनी की नींद नहीं खुली. यानि कि वह गहरी नींद में थी।
उसके बाद मैंने उसकी चोली के हुक खोल दिये। उसकी चूचियाँ उछलकर बाहर आ गईं।
अब मैंने दोनों हाथों से उसकी दोनों चूचियाँ दबाईं. फिर उसकी एक चूची अपने मुँह में भरकर उसे बेतहाशा उसका निप्पल चूसने लगा।
साथ ही मैंने अपनी उँगली भी उसकी बुर में चलानी शुरू कर दी।
कुछ ही पलों में उसकी सिसकारियाँ निकलने लगीं।
जब मैंने देखा कि उसकी नींद खुल रही है तो मैंने उसके निप्पल को ज़ोर से काट लिया।
वो एकदम सकपकाकर उछलकर बैठ गयी.
पहले उसने मुझे देखा फिर अपनी हालत को फिर चारों ओर देखा. उसने देखा कि सब लोग गहरी नींद सो रहे थे।
तब उसकी जान में जान आई।
मैंने उसके होंठों पर ज़ोर से चुम्बन किया और उसे अपने पीछे आने का इशारा किया।
उसने अपने कपड़े ठीक किये और मेरे पीछे चल दी।
मैं उसको लेकर ऊपरी तल में बने भण्डार में ले आया। घर के सारे लोग बड़ी गहरी नींद में सो रहे थे तो वहाँ किसी के आने की कोई सम्भावना नहीं थी।
मैंने उसे इत्मीनान से पूरी नँगी किया। सबसे पहले उसके लहँगे का नाड़ा ढीला किया तो लहँगा नीचे सरक गया। फिर उसकी चोली को उसके जिस्म से अलग कर दिया।
अब वह केवल पैंटी में थी।
आहिस्ते से मैंने उसकी पैंटी भी सरकाकर उसके जिस्म से अलग कर दी।
पहली बार मैंने उसको ठीक से निहारा. गेहुँआ रंग, तराशा हुआ गदराया बदन।
मैंने एक तख्त को साफ करके उस पर कुछ बोरियाँ बिछा दीं तथा एक पल्ली डाल दी ताकि उस पर आराम से चुदाई कर सकूँ।
चुदाई में मैं कोई जल्दबाजी नहीं करता। बहुत प्यार से हौले से चुदाई करता हूँ, जो भी औरत मुझसे एक बार चुदवा लेती है वह मेरी मुरीद बन जाती है।
मैं तख्त पर बैठ गया उसे झुकाकर उसके होंठ अपने मुँह में लिए और उन्हें चूसने लगा।
मैं बैठा था, मेरे होंठों में अपने होंठ देने के लिए उसे झुकना पड़ा था तो मैंने उसकी पीठ से अपने दोनों हाथ फिराता हुआ उसकी गांड तक ले गया।
फिर मैंने उसे पीछे घूमने को कहा।
वह पीछे घूम गयी तो मैंने उसकी गांड की गोलाइयों अच्छी तरह महसूस किया।
फिर मैं उससे चिपक गया और उसकी बुर में उँगली डाल दी।
इसी समय उसने मुझसे अपना लण्ड दिखाने को कहा।
मैंने भी अपनी पैंट और चड्ढी उतारी और उसको अपना तना हुआ तम्बू दिखाया। बड़े गौर से उसने मेरे लण्ड को देखा तो मैंने उससे चूसने के लिए कहा।
उसने मना तो किया पर उसमें उतनी झिझक नहीं थी. मेरे थोड़ा ज़ोर देने पर वह मान गयी।
उसने मेरा लण्ड अपने मुँह में रखा और धीरे-धीरे चूसने लगी। थोड़ी देर उसका मुँह चोदने के बाद मुझे लगा कि मेरा निकलने वाला है। मैंने उसका सिर कसकर पकड़ लिया और धक्के तेज़ कर दिए और उसके मुँह में ही झड़ गया।
उसने बहुत कोशिश की पर जब तक उसने मेरा सारा माल निगल नहीं लिया तब तक मैंने उसको अपना लण्ड उसके मुँह से निकालने नहीं दिया।
अपने माल की अन्तिम बूँद भी उसकी जीभ में पौंछकर ही मैंने अपना लण्ड उसके मुँह से निकाला।
मेरी इस हरकत से वह बहुत गुस्सा हो गयी और मुझे गुस्से से देखने लगी।
रूठने-मनाने का समय नहीं था इसलिए मैंने अपना काम जारी रखा।
मैंने उसको अपनी गोद में बैठा लिया और उसके होंठों को चूमने लगा। इसी के साथ उसकी बुर में उँगली करके उसकी वासना को जगाने लगा।
थोड़ी ही देर में उसने सब कुछ भूलकर अपनी टाँगें फैला दीं और तेज़ सिसकारियां लेने लगी। हम दोनों चूमते हुए अपनी जीभें भी आपस में लड़ा रहे थे।
वह कसकर मुझसे लिपट गयी और ‘डाल दो’, ‘और मत तड़पाओ’, ‘मुझे अपना बना लो, प्लीज़’ कहकर बड़बड़ाने लगी. अपने हाथ से मेरा लण्ड कसकर पकड़कर दबाने लगी।
मैंने उस पर दया करते हुए उसको लिटाया और पैर फैलाने को कहा।
वह अपने पैर फैलाकर लेट गयी।
मैंने उसकी बुर के द्वार पर अपना लण्ड सेट किया और उससे पूछा- तैयार हो?
उसने भी तड़पकर जवाब दिया- हाँ आंआअ!
एक धक्का लगाया मैंने तो उसकी बुर में आधा लण्ड उतर गया, उसके मुख से घुटी हुई चीख निकली- उई माँ आ अ अ स्स!
मैंने और धक्का कसकर लगाया तो मेरा लण्ड उसकी बुर की झिल्ली फाड़ता हुआ अंदर घुस गया।
इस बार वह बहुत ज़ोर से चीखी- मम्मी ईईई … मैं मर गयी ईईई।
घर में किसी के जागने की कोई सम्भावना नहीं थी इसलिए मैंने उसका मुँह बन्द करने का कोई प्रयास नहीं किया। मैंने उसकी तरफ देखा तो उसकी दोनों आँखों से जलधारा गिर रही थी।
मैं उसी हालत में उसके ऊपर लेट गया, उसकी चूचियों को चूसने लगा।
एक ही मिनट में उसने अपनी पीड़ा भूलकर मेरा सिर अपनी छाती से चिपकाने लगी। इसके साथ ही उसने अपनी गांड हिलाकर शुरू करने का इशारा किया।
मैंने धक्के लगाने शुरू किये और 15 मिनट तक उसे बेदर्दी से चोदा। इस दौरान उसने मुझे अपने आलिंगन में कसा हुआ था. वो लगातार बड़बड़ाये जा रही थी- आह … मेरे अभिनव … करते रहो! बहुत अच्छा लग रहा है।
15 मिनट में वह दो बार झड़ चुकी थी पर मेरा नहीं निकला था।
तब मैंने उसको घोड़ी बनाया और पीछे से उसकी बुर में लण्ड सेट किया और एक ही झटके से उसकी बुर में लण्ड उतार दिया।
मेरे धक्कों से उसकी चूचियाँ भी बुरी तरह हिल रही थीं जिन्हें मसल-मसलकर मैं उसकी वासना बढ़ा रहा था।
इस दौरान वह एक बार और झड़ गयी। तभी मेरा भी होने को आया तो मैंने उससे पूछा- कहाँ निकालूँ?
पर उसने सुना नहीं, मैंने फिर पूछा पर उसने फिर भी नहीं सुना। वह आँख बंद किये लगातार बड़बड़ाये जा रही थी।
जब मैंने देखा कि और नहीं रोक सकता अब मेरा छूट ही जायेगा तो मैंने सोचा कि बुर में ही छोड़ूँगा तो कहीं गर्भ न ठहर जाए। यह सोचकर मैंने उसकी बुर से लण्ड निकाला और उसको पीठ के बल लिटा दिया।
उसकी आँखें अभी भी बन्द थीं। मैंने 69 वाले पोज़ में आकर उसके मुँह में फिर से अपना लण्ड पेल दिया और उसके मुँह में ही झड़ गया।
मैं उसकी बुर को नहीं चाट रहा था बस अपने हाथों से उसे सहला रहा था।
वो अपने मुँह से लण्ड निकालने के लिए छटपटा रही रही और अपने हाथों से मेरी जाँघ को मार रही थी पर मैंने उसे नहीं निकाला।
फिर से उसे मेरा माल पीना ही पड़ गया।
उसे फिर से गुस्सा आ गया था तो मैंने उसे अपने गले से लगाकर बहुत कसकर चिपका लिया.
मैंने उससे कहा- आज से तुम बस मेरी हो! जल्दी ही तुम्हारे गाँव आकर मैं तुम्हारी चुदाई करूँगा।
इस बात से वह खुश हो गयी और मुझसे चिपक गयी।
बहुत देर तक हम दोनों नंगे एक दूसरे से चिपके पड़े रहे।
इस दौरान उसने चाटकर मेरा पूरा लण्ड साफ किया और उससे खेलती-चूमती रही। फिर मैंने उसे उसका खून दिखाया जो उसकी सील टूटने पर निकला था।
थोड़ी देर बाद उसने मेरा लण्ड फिर से हिला-हिलाकर खड़ा किया।
मैंने मिनी की गांड मारने के इरादे से इस बार अपना लण्ड उसकी गांड के छेद में सेट किया और अंदर डालने के लिए धक्का मारा।
वह दर्द से बिलबिला उठी।
फिर से दोबारा प्रयास करने पर भी उसे बहुत जोर का दर्द हुआ। फिर उसके बाद वह गांड में लण्ड लेने को तैयार नहीं हुई।
मैंने भी उसके बाद ज़ोर नहीं दिया और उससे कहा- जब मैं तुम्हारे घर आऊँगा तब तुम्हारी गांड ज़रूर मारूँगा।
फिर उसके बाद मैं ऐसा मुँह बनाकर बैठ गया मानो मुझे बहुत बुरा लग गया हो।
यह देखकर मिनी मेरे पास आई और मुझे लिटाकर मेरे लण्ड को अपने हाथ से अपनी बुर पर सेट करके बैठ गयी। पूरा लण्ड एक झटके से उसकी बुर में उतर गया। अपनी कमर हिला-हिलाकर उसने पूरी मस्ती से चुदाई करी।
आधे घण्टे की चुदाई के बाद मैंने उसे बताया- मेरा होने वाला है.
तो उसने नशीली निगाहों से मुझे देखा और मेरा लण्ड अपने मुँह में लेकर उसे चूसने लगी।
इस बार वो बहुत अच्छे से चूस रही थी। सारा माल अपने मुँह में लेकर पी गयी और मेरा लण्ड भी चाटकर साफ कर दिया।
इससे मुझे बहुत हैरत हुई।
अब तक हम लोगों को दो घण्टे से ज़्यादा समय हो गया था। अब कोई जाग भी सकता था तो हम उठे और अपने-अपने कपड़े पहनकर बैठ गए।
एक दूसरे को अपने आगोश में लिए हम बात कर रहे थे।
इस पूरे दौरान मेरा हाथ या तो मिनी की चूचियों पर होता या उसके लहँगे के अंदर उसकी चड्डी पर।
उसने मुझसे पूछा- मेरे गाँव कब आओगे?
मैंने उसके होंठ चूसते हुए कहा- एक हफ्ते के भीतर आ सकता हूँ यदि जैसा मैं कहूँ वैसा तुम करो तो।
मिनी ने मुझसे लिपटकर कहा – जी, करूँगी। जैसा कहोगे वैसा करूँगी।
मैंने उसको समझाया- जब वापस जाना तो यह लहँगा और कुछ और ज़रूरी सामान यहीं छोड़ जाना। दो दिन के बाद फोन करके उसे जल्दी भिजवाने को कह देना।
मिनी ने पूछा- पर इतने भर से अपना मिलन कैसे होगा?
मैंने अपना हाथ उसके लहँगे के अंदर उसकी चड्डी में डालकर उसकी बुर को दबाते हुए कहा- मेरी जान, तुम बस इतना करो और बाकी सब मेरे ऊपर छोड़ दो। लेकिन वहाँ तुम्हारी गांड ज़रूर मारूँगा यह ध्यान रखना।
वो मुस्करा दी पर बोली कुछ नहीं।
इसके बाद हम दोनों फिर मस्ती में डूब गए। उसने मेरी चेन खोलकर मेरा लण्ड बाहर निकाल लिया और उसे चूमने लगी।
शायद उसे मेरे वीर्य का स्वाद पसंद आने लगा था।
उसके चूमने चाटने की वजह से लण्ड फिर से खड़ा हो गया।
अब क्या करें? कपड़े पहन चुके थे तो चुदाई नहीं हो सकती थी। मैंने मिनी के लहँगे को ऊपर किया और उसके ऊपर लेट गया।
मिनी की चड्डी बिना उतारे ही उसकी बुर के ऊपर अपना लण्ड घिसने लगा। बेशक मिनी मेरा पूरा साथ दे रही थी पर मज़ा नहीं आ रहा था।
तभी नीचे के खण्ड में लोगों की बातें करने की आवाज़ें सुनाई दीं। तो हम दोनों फिर अलग हो गए।
मैंने मिनी को नीचे भेज दिया और खुद कमरे की सफाई में जुट गया। बोरियाँ और पल्ली जिनमें मिनी का खून लग गया था, उन्हें मैं मकान के पीछे वाले कूड़ाघर में फेंक आया. और तख़्त पर पोंछा लगा दिया।
फिर मैं भी वहाँ से चला गया।
मिनी को चोदने के बाद मैं कुछ देर और अपने दोस्त के घर में रुका रहा फिर अपने घर चला गया। मिनी को भी अगले दिन दोपहर को ही निकलना था तो वह भी अपनी माँ के साथ चली गयी।
पर उसने मेरी योजना के अनुसार अपना काम कर दिया था। वह अपना लहँगा और कुछ और भी ज़रूरी सामान यहीं छोड़कर गयी थी।
मैं जानता था कि मेरा दोस्त वह सामान वापस देने मिनी के गाँव ज़रूर जाएगा. चूँकि सफर थोड़ा लम्बा है इसलिए मुझे भी अपने साथ ज़रूर लेकर जाएगा।
मेरी फूलप्रूफ़ योजना तैयार थी।
तीन ही दिन बाद मेरे दोस्त ने मुझसे मिनी के घर चलने को कहा।
मैं तुरन्त तैयार हो गया। हमें उसी दिन दोपहर की बस पकड़नी थी तो मैंने फटाफट ज़रूरी सामान पैक किया।
समय से हम लोग बस में बैठ गए। अगले दिन की वापसी थी तो मुझे मिनी के साथ जो कुछ भी करना था उसी रात को करना था। इसलिए सफर की थकान के कारण मिनी के घर में मुझे सिरदर्द या नींद न सताए इसके लिए मैंने सिरदर्द की एक गोली ले ली और बस छूटते ही सो गया।
सोने से पहले मैंने अपने दोस्त से कह दिया- यार! मेरे सिर में ज़रा दर्द हो रहा है तो मैं दवा खाकर सोता हूँ, तू जागकर सामान देखते रहना।
यहाँ मेरी योजना का पहला चरण यह था कि मिनी के गाँव पहुँचने तक सफर की थकान मेरे दोस्त को होगी जबकि मैं नींद पूरी कर लेने के कारण तरोताज़ा रहूँगा। तो मुझे मेरे मक़सद पूरा करने में आसानी रहेगी।
मिनी के गाँव तक पहुँचने में शाम के 7 बज गए थे। तब गाँवों में लोग खा-पीकर जल्दी सो जाया करते थे।
मिनी का घर बड़ा था और उसमें रहने वाले केवल 2 लोग! उसका घर जिस जगह था वहाँ केवल दो ही घर थे। आगे वाला घर एक खण्डहर था और पीछे वाला मिनी का। मुख्य सड़क से एक गली मिनी के घर की तरफ मुड़ती थी और दोनों घरों को घेरती हुई पुनः मुख्य सड़क पर मिल जाती थी। उसके आगे चारों तरफ खेत थे। उस गाँव में बिजली तो थी पर कई घरों में अभी भी चूल्हा जलता था।
मैं थोड़ा पीछे था। घर का दरवाजा मिनी ने ही खोला।
दरवाज़े पर केवल मेरे दोस्त को देखकर मिनी उदास हो गयी।
दोस्त अंदर चला गया पर मैं बाहर ही रुक गया।
जब मैं नहीं आया तो मेरे दोस्त ने मिनी से कहा- अरे, अभिनव अन्दर नहीं आया! जाकर देख तो!
यह सुनते ही मिनी ने भागकर दरवाजा खोला, सामने मैं खड़ा था।
मुझे देखते ही मिनी का चेहरा खिल गया। मिनी लाल रंग का तंग सलवार और कुर्ता पहने थी।
रात का समय था और गली सुनसान थी. तो कोई डर नहीं था इसलिए मैंने मिनी को बाहर गली में खींच लिया।
मिनी पहले तो सकपकाई. फिर मेरा इरादा भाँपकर इतनी कसकर मेरे सीने से चिपट गयी थी कि मेरा लण्ड तन गया।
मैंने मिनी के होंठों को अपने होंठों में कस दिया और अपने दोनों हाथों से उसकी कमर के दोनों उभार दबाने लगा। मिनी मेरा पूरा साथ दे रही थी। वह कसकर मुझसे चिपकती जा रही थी।
इस तरह कुछ पल उसके होंठ चूसने और उसके कुर्ते के अंदर हाथ डालकर उसके नँगे जिस्म को मसलकर मैं उससे अलग हुआ और हम दोनों अंदर आ गए।
मिनी की मम्मी मेरे और मेरे दोस्त के भोजन की व्यवस्था करने में लग गई. मिनी उनका हाथ बँटाने लगी।
मेरा दोस्त और मैं टीवी देखने लगे।
मेरे दोस्त को सफर की थकान थी और उसका सिर भी दर्द कर रहा था इसलिये वह जल्द ही ऊँघने लगा था।
मैं जहाँ बैठा था वहाँ से मैं मिनी को रसोई में देख सकता था और मिनी भी मुझे देख सकती थी। इसलिए मेरा ध्यान मिनी की ही ओर था।
मिनी का ध्यान भी मेरी ओर ही था। वह भी बार-बार मुझे देख रही थी। जैसे ही मिनी की नज़र मुझ पर पड़ती, मैं कभी उसे आँख मार देता. कभी होंठों से फ्लाइंग किस कर देता. तो वह मुस्करा देती।
फिर मैंने उसे कुछ अश्लील इशारे करना शुरू कर दिया।
मिनी ने मेरे इशारों का ज़रा भी बुरा नहीं माना. बल्कि मुझे अपलक लगातार देखे जा रही थी. उसकी आँखों में वासना तैरती जा रही थी।
खाना तैयार हो गया तो हम दोनों ने खाना खाया। खाना खाने के बाद हम सब बैठकर बातें करने लगे।
सफर की थकान के कारण मेरे दोस्त का सिरदर्द बहुत बढ़ गया था तो उसने मुझसे सिरदर्द की गोली माँगी।
मैंने गोली उसे खिला दीं।
दो बार चूल्हा जलाने और धुँए में काम करने के कारण मिनी की मम्मी को भी सिरदर्द होने लगा था। मिनी की मम्मी को भी मैंने दर्द की गोली खिला दीं।
मिनी मेरे तथा मेरे दोस्त के बिस्तर छत पर लगाने चली गयी।
यह मेरे प्लान का ही हिस्सा था। मैं जानता था कि सफर के बाद मेरे दोस्त का सिरदर्द होने लगता है। इसीलिए मैंने उसे सिरदर्द की नहीं बल्कि नींद की गोली दे दी थी।
मिनी की मम्मी को भी मैंने नींद की ही गोली दी थी। अब रात भर किसी के उठने का कोई डर नहीं था।
मेरे प्लान का यह चरण सफलतापूर्वक पूरा होने के बाद अब मेरे पास कम-से-कम दस घण्टों का समय था मिनी के साथ रंगरलियाँ मनाने के लिए।
थोड़ी देर में जब वह लौटी तब तक उसकी मम्मी और मेरा दोस्त वहीं बैठक में ही सो चुके थे।
मिनी को मैंने झपटकर अपनी ओर खींच लिया और उसके कपड़ों के अंदर हाथ डालने लगा। उसने मेरा विरोध तो नहीं किया पर अपनी मम्मी और मेरे दोस्त की तरफ देखने लगी कि कहीं उनकी नींद न खुल जाए।
मैंने उसको आश्वस्त करते हुए बताया कि इन दोनों को मैंने नींद की बड़ी वाली गोली दे दी है। अब ये दोनों सुबह से पहले नहीं उठेंगे।
यह सुनकर उसने अपने शरीर को मेरे हवाले कर दिया।
मैंने उससे कहा- अब नंगी हो जाओ, मेरी जान और अपने आशिक की प्यास बुझा दो।
वो बोली- अपनी जान को आप ही नँगी करो मेरे राजा!
मैंने उसे अपनी गोद में बैठाकर उसके कुर्ते के अंदर हाथ डालकर उसकी दोनों चूचियाँ दबाने लगा और उसकी गर्दन चूमने तथा काटने लगा।
मिनी बेहद गर्म थी और मस्त होती जा रही थी।
मैंने मिनी के बदन से कुर्ता निकाल दिया। उसने अंदर ब्रा/समीज कुछ नहीं पहना हुआ था इसलिए उसका ऊपरी जिस्म अब मेरे आगे खुल गया।
फिर वही नारी सुलभ लज्जा! उसने अपने हाथों से अपने स्तन छिपाते हुए बगल में सोई अपनी मम्मी और नीचे ज़मीन पर सोए मेरे दोस्त पर नज़र डाली।
उसके बाद धीरे से उसका पाजामा भी उसके शरीर से अलग कर दिया।
अब पूरी तरह निर्वस्त्र मिनी मेरे सामने थी। ट्यूबलाइट की रोशनी में उसका गेहुँआ रंग खिल रहा था।
मैंने उसके कान में कहा- रानी, आज तुम्हें हर तरह से प्यार करूँगा।
उसने प्यार भरी नज़रों से सहमति देते हुए अपनी आँखें बंद कर लीं।
उसके स्तन को ढके दोनों हाथों को मैंने वहाँ से हटाया और उसके दोनों चूचियों को बारी-बारी से चूसा। मैं मिनी के चूतड़ों पर हाथ रखे उसके स्तन चूस रहा था.
वह बड़े प्यार से मेरे बालों पर हाथ फिराकर मुझे अपनी तरफ भींच रही थी। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थीं- ओह मेरे अभिनव … मेरे राजा. मैं तुम्हारी हूँ … आह … और चूसो.
उसकी सिसकारियाँ तेज़ होती जा रही थीं। इतनी तेज़ आवाज़ सुनकर किसी की भी नींद खुल सकती थी। ये तो दवा का असर था कि दोनों लोग बेसुध पड़े थे।
इसके बाद जब मैंने उसकी बुर पर हाथ लगाया तो उसकी बुर बहुत गर्म हो चुकी थी और बहुत पानी छोड़ रही थी।
अभी तक मैं नँगा नहीं हुआ था। मिनी को मैंने तख्त पर उसकी मम्मी के बगल में लिटा दिया और अपने कपड़े उतारने लगा।
अपनी मम्मी के बगल में पूरी तरह नँगी पड़ी मिनी मेरी तरफ अपलक देख रही थी। केवल चड्डी पहने मैं उसके पास गया और उसे इशारा किया।
वह मेरा इशारा समझ गयी।
उसने मेरी चड्डी नीचे सरकाई और मेरे तने हुए लण्ड से खेलने लगी।
मैंने उसे लण्ड चूसने का इशारा किया। वह तुरन्त ही मेरा लण्ड अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। इस बार मैं भी उत्तेजित था तो 5 मिनट में ही मैं उसके मुँह में झड़ गया।
उसने इस बार बिना किसी झिझक के मेरा सारा माल पी लिया।
इसके बाद मैं मिनी के ऊपर ही लेट गया उसके सारे अंगों से अपने अंग चिपकाकर लेट गया। मेरा लण्ड झड़ने से सिकुड़ गया था पर मिनी अभी प्यासी थी। अपने ऊपर लिटाये हुए ही वह मेरे लण्ड को अपने हाथ से अपनी बुर पर रगड़ने लगी।
कुछ ही देर में मेरा लण्ड फिर से खड़ा हो गया। मैंने उसे टाँगें फैलाने का इशारा किया।
उसने अपनी टाँगें फैला दीं।
मैंने अपना लण्ड उसकी चूत पर टिकाया और उससे पूछा- डाल दूँ?
उसने अपनी सिर हिलाकर ‘हाँ’ का इशारा किया।
मैंने उससे फिर पूछा- डाल दूँ?
उसने फिर से वैसा ही इशारा किया।
मैंने कहा- मुँह से बोलो!
वो बोली- अब डाल भी दो न!
मैंने एक झटके से पूरा लण्ड उसकी चूत में उतार दिया। अभी उसकी चूत कसी हुई थी और एक झटके में पूरा लण्ड उतर जाने से उसे तेज़ दर्द हुआ और उसकी तेज चीख निकल गयी- उईई मम्मी ईईई!
मैंने मिनी से इशारों में पूछा- शुरू करूँ?
उसने अपने दोनों हाथों से मेरी कमर को दबाकर शुरू करने का इशारा किया।
मैंने अपने होंठों में उसके होंठ भरकर चूसना और धीरे-धीरे अपने लण्ड को मिनी की चूत में झटके देना शुरू किया। मिनी मेरा पूरा साथ दे रही थी। अपनी दोनों टाँगों को उसने मेरी कमर के चारों के तरफ लपेट लिया था. और अपने दोनों हाथ मेरी पीठ और सिर पर फिरा रही थी।
अब मैंने झटकों की गति बढ़ा दी। मेरे झटकों से तख्त भी बुरी तरह से हिल रहा था. पर ये दवा का ही असर था कि मिनी की मम्मी की नींद नहीं खुल रही थी। वे गहरी नींद सो रही थीं और उन्हीं के बगल में उन्हीं की बेटी चुद रही थी।
पूरा कमरा मिनी की चीखों से गूँज रहा था- अभिन…व … और करो ओओ … बहुत अच्छा लग रहा है. ओअह … चोदते रहो.
आधे घण्टे धुआँधार चुदाई के बाद मिनी का शरीर अकड़ने लगा और कुछ ही पलों में वह निढाल हो गयी।
थोड़ी ही देर बाद मेरा भी निकलने वाला था। मैं मिनी की चूत में ही झड़ गया और उसकी पूरी चूत अपने माल से भर दी।
मैं भी उसके ऊपर निढाल होकर गिर गया और देर तक हम दोनों ऐसे ही एक दूसरे से चिपके पड़े रहे।
मैंने तख्त पर लेटकर मिनी को अपने ऊपर कर लिया।
मिनी मेरे होंठ चूस रही थी।
मैंने उससे पूछा- मज़ा आया?
मिनी बोली- हाँ, मेरे राजा!
मैं- और चुदोगी!
मिनी शर्माते हुए- ह्म्म्म!
मैं- कितनी बार?
मिनी- जितनी बार आप चाहें, मेरे राजा! आज से मैं आपकी ही हूँ। आप जब भी चाहें, जैसे भी चाहें मेरे साथ खेल सकते हैं।
यह सुनकर मैंने मिनी को गले से लगा लिया और उससे बाहर चलने का इशारा किया।
मिनी उठकर कपड़े पहनने लगी तो मैंने उसे रोक दिया।
मैंने कहा- आज की रात हम दोनों ऐसे ही नँगे रहेंगे।
मेरी बात सुनकर मिनी रोमाँचित हो उठी. तब तक मैंने उसकी बगल में हाथ डालकर उसका एक स्तन पकड़ा और उसे अपने साथ छत की तरफ ले जाने लगा।
मिनी बिना किसी संकोच के मेरे साथ चल दी।
छत का रास्ता सँकरा होने के कारण दोनों साथ नहीं चढ़ सकते थे इसलिए आगे मिनी चढ़ी और उसके पीछे-पीछे मैं चढ़ा। चढ़ते समय मैं मिनी की बलखाती गांड को देख रहा था. और सोच रहा था कि अबकी इसकी गांड भी मारनी है।
वहाँ दूर तक कोई भी और घर मिनी के घर से ऊँचा नहीं था इसलिए यहाँ भी हमें कोई भय नहीं था। हम-दोनों आराम से अपनी चुदाई-लीला यहाँ भी जारी रख सकते थे।
उसकी छत पर एक पतला गलियारा था जो घर के एक हिस्से की छत को दूसरे हिस्से की छत से जोड़ता था। उस गलियारे के दोनों तरफ लगभग ढाई-ढाई फुट ऊँची मुँडेर थी जहाँ से नीचे का आँगन दिखता था।
यही गलियारा हमारी चुदाई का अगला अखाड़ा बनने वाला था.
पर उस समय तक मुझे इस बात का अंदाज़ा नहीं था।
उसी गलियारे से होते हुए हम उस जगह पर आ गए जहाँ मिनी ने हमारे सोने के लिए बिस्तर लगाए थे।
बिस्तर पर बैठकर मैंने चाँदनी में छत का मुआयना किया। छत पर काफी सारा सामान पड़ा था, जैसे- कपड़े फैलाने की डोरी, बन्दर भगाने के लिए लाठियाँ, ईंटों का ढेर, कई सारे मटके इत्यादि।
हम दोनों पालथी मारकर बैठे थे। मिनी मेरे सामने थी और मैं चाँद की रोशनी में उसका जिस्म निहार रहा था।
फिर मैंने मिनी से उसकी गांड मारने को कहा तो उसने मना नहीं किया।
उसने मेरे लण्ड को अपनी मुट्ठी में पकड़कर उसे हिलाना शुरू किया तो वह फ़ौरन ही खड़ा हो गया।
तब मैंने मिनी से घोड़ी बनने को कहा।
मिनी घोड़ी बन गयी।
मैंने उसकी गांड के छेद में लण्ड डालने का प्रयास किया। उसकी गांड बेहद कसी हुई थी इसलिए उसे बहुत दर्द हुआ।
वो ज़ोर से चिल्लाई और मुझे रुकना पड़ा।
कई बार प्रयास करने पर भी यही हाल रहा तो मिनी डर गई और उसने गांड मरवाने से बिल्कुल मना कर दिया।
मेरे बहुत ज़ोर देने पर जब वह नहीं मानी तो फिर मैंने पीछे से ही उसकी चूत में ही लण्ड डालकर उसे कुतिया बनाकर उसकी चुदाई शुरू कर दी।
चाँद की दूधिया चाँदनी में नहाए हम-दोनों एक-दूसरे में समाए हुए थे। मैं पीछे से उसकी चूत में लण्ड डालकर उसकी पीठ से चिपककर उस पर लेट गया. मैं अपने हाथों से उसकी दोनों चूचियाँ दबाने लगा और उसके कन्धों पर चूमने लगा।
मिनी अपनी गांड से पीछे धक्के देकर मुझे शुरू होने का इशारा करने लगी।
कुछ पल इसी तरह लेटे-लेटे धीरे-धीरे धक्के देने के बाद मैं सीधा हुआ और अपने हाथों को उसके कन्धों से पीठ और पसलियों पर फिराते हुए उसकी कमर तक लाया. और उसकी कमर को कसकर पकड़ लिया।
अब मैंने अपने धक्के तेज कर दिए. मिनी की सिसकारियाँ गूँजने लगीं।
कई बार उत्तेजना में मैं उसके बाल भी खींच लेता था तो सिसकारी में उसकी चीख भी मिल जाती।
लगभग मैंने आधे घण्टे तक उसे चोदता रहा।
मिनी अब तक दो बार झड़ चुकी थी। फिर मैं भी उसकी चूत में ही झड़ गया।
मेरे झड़ते ही वह बिस्तर पर पेट के बल लेट गई और उसी के ऊपर मैं भी लेट गया।
मुझसे दो बार चुदने के बाद मिनी बेहद खुश थी।
मैं भी खुश था. पर मुझे अभी तक उसकी गांड न मार पाने का मलाल था।
कुछ देर वैसे ही लेटे रहने के बाद मैं मिनी के बगल में उसकी पीठ से चिपककर लेट गया. अपने पैर मैंने उसके पैरों पर रख दिये तथा अपने हाथ से उसके स्तनों के साथ खेल करने लगा।
मिनी और मैं इसी तरह लेटे बहुत देर तक बातें करते रहे।
उसने मुझे अपने परिवार के बारे में बताया.
पिता के गुजरने के बाद खराब होती आर्थिक स्थिति के बारे में बताया. जिसके कारण उसकी पढ़ाई में भी बाधा आयी।
उसने बताया कि वह आगे पढ़ना चाहती है पर आर्थिक स्थिति उसे ऐसा करने से रोक रही है. शहर में रहना-खाना कॉलेज की फीस इत्यादि सब कैसे होगा. किसी रिश्तेदार का एहसान वह नहीं लेना चाहती थी।
मैंने उसे सांत्वना दी कि उसका आगे पढ़ाई जारी रखने में मैं उसकी बहुत मदद कर सकता हूँ। वह केवल कॉलेज की फीस की व्यवस्था कर ले, बाकी सब मुझ पर छोड़ दे।
मेरी बातें सुनकर उसे बहुत संतोष हुआ।
इसी तरह हम बहुत देर तक बातें करते रहे। मैंने उसके पूरे शरीर के हर भाग को खूब चूमा-चाटा और महसूस किया।
उसने भी मेरे पूरे शरीर को चूमा।
फिर वह मेरे लौड़े से खेलने लगी।
मैंने उसे ऊपर खींचा और उसकी गांड पकड़कर खींचकर उसे अपने नज़दीक किया. तब मैंने उसकी चूत में अपना लण्ड छुआ दिया और फिर उसके होंठ चूसने लगा।
वह भी मुझे अपनी बांहों में जकड़े मेरा साथ देने लगी और अपनी चूत को मेरे लण्ड पर रगड़ने लगी।
हम दोनों एक-दूसरे से चिपके मचल रहे थे। लग रहा था कि यह रात कभी खत्म न हो।
तभी मेरे मन में एक विचार कौंधा।
मैंने उससे पूछा- क्या एक नए आसन में चुदाई करोगी?
वो तुरन्त तैयार हो गयी।
मैंने उससे उकड़ूँ बैठने को कहा.
वो बैठ गयी।
फिर वहाँ पड़ी कपड़े फैलाने वाली सुतली से उसकी एक बाँह को एक जाँघ से और दूसरी बाँह को दूसरी जाँघ से बाँध दिया।
बाँधते समय मैंने ध्यान रखा कि उसे दर्द बिल्कुल भी न हो। फिर मैं उसे उठाकर उसी गलियारे में ले आया जो दो छतों को जोड़ता था।
फिर मैंने बन्दर भगाने वाली लाठी उठाई और उसकी दोनों बाँहों के बीच से निकाल दी और लाठी के दोनों सिरे गलियारे की दोनों मुँडेरों पर रख दिए।
अब मिनी दोनों मुँडेरों के बीच हवा में झूल रही थी।
आप लोगों ने दो हंसों और एक कछुए की कहानी अवश्य सुनी होगी जिसमें दोनों हंस अपने मित्र कछुए को डण्डे की सहायता से लटकाकर उड़ते हुए दूसरे स्थान पर ले गए थे।
मिनी बिल्कुल उसी कछुए की तरह दोनों मुँडेरों के बीच लाठी से लटकी थी।
वो समझ नहीं पा रही थी कि मैं क्या करने जा रहा हूँ।
इतना करके मैं मिनी के सामने खड़ा हो गया. अब मैंने उसे लण्ड चूसकर खड़ा करने को कहा। मिनी वैसे ही लटकी लण्ड चूसने लगी।
बहुत देर का बैठा लण्ड खड़ा हो गया।
फिर मैंने मिनी की चूत में उँगली करके उसका पानी निकाला।
अब मैंने मिनी की गांड अपनी तरफ कर ली और उस सारे पानी को मैंने मिनी की गांड के छेद पर लगा दिया।
अब मिनी को समझ में आ गया कि मैं क्या करने वाला हूँ।
वह मुझसे उसे छोड़ देने को मिन्नतें करने लगी।
मैंने उसे समझाया और कहा- परेशान न हो। कुछ नहीं होगा।
मिनी इस बन्धन से छूट नहीं सकती थी। वह पूरी तरह से मेरी दया पर निर्भर थी। पर मुझे उसकी गांड मारनी ही थी।
मैंने उसकी गांड के छेद पर अपना लण्ड टिकाया और खूब सारा थूक उसकी गांड पर डाल दिया।
मिनी ‘नहीं! नहीं! अभिनव नहीं!’ करती रही पर मैंने उसकी एक न सुनी।
थोड़ा आगे-पीछे करने के बाद मैंने एक तेज़ धक्का लगाया और पूरा लण्ड उसकी गांड में घुस गया।
मिनी के मुँह से बहुत जोर की चीख निकली- मर गयी ईयी … निकालो इसे बाहर!
और वह रोने लगी.
पर मैं कहाँ सुनने वाला था! मैंने उसी हालत में रुककर मिनी को थोड़ा स्थिर होने दिया।
मिनी लगातार रोये जा रही थी और मुझसे लण्ड निकाल लेने की विनती कर रही थी। मैं उसकी चूची दबाना, उसके बदन को चूमना-चाटना जारी रखकर उसे गर्म करता रहा।
लगभग दस मिनट के बाद जब उसका दर्द कुछ कम हुआ तब मिनी ने खुद अपनी गांड मेरे लण्ड की तरफ धकेली।
मैं समझ गया। फिर मैंने उसके धक्के लगाना शुरू कर दिया। हर धक्के के साथ मेरा लण्ड उसकी गांड की गहराई में उतरता जा रहा था।
मिनी की सिसकारियाँ लेती जा रही थी- आह … आअह … मेरे अभिनव. और तेज़ करो न! फाड़ दो इसको!
पंद्रह मिनट बाद मैंने उसकी गांड में अपना माल भर दिया और उसके बाद मिनी के बन्धन खोल दिये।
मिनी से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था। वह बड़ी मुश्किल से घुटनों के बल रेंगकर बिस्तर तक आयी और पस्त होकर लेट गयी।
मैं उसके पास गया और उसकी गोल-गोल कमर पर हाथ फेरते हुए बोला- अब आज से तू मेरी रखैल।
मिनी ने कोई जवाब नहीं दिया।
हम दोनों 4 घण्टे से भी ज़्यादा समय से छत पर थे।
तो मैंने मिनी से नीचे चलने को कहा।
हम दोनों नीचे आ गए।
नीचे आकर पहले मैं टॉयलेट गया और फिर अपना लण्ड धोया.
उसके बाद मिनी भी टॉयलेट गयी और उसके बाद उसने भी अपनी चूत धोयी।
फिर हम दोनों कमरे में आ गए जहाँ मिनी की मम्मी और मेरा दोस्त दोनों कुम्भकर्ण की नींद सो रहे थे।
मैं वहीं दीवान पर बैठ गया। मिनी मेरे बगल में मुझसे सटकर बैठ गयी।
मैंने उसके कन्धे पर हाथ रखा और धीरे-धीरे पीठ पर हाथ फिराते हुए नीचे कमर तक सहलाने लगा।
फिर मैंने उसको अपनी गोद में बिठा लिया, और उससे कहा- अब तुम करो।
मिनी मेरी दोनों बगलों के दोनों तरफ पैर डालकर मेरी गोद में बैठ गयी और अपना सिर मेरी छाती पर रखकर मुझसे चिपक गयी।
मैंने महसूस किया कि वह सिसक रही है।
उसका चेहरा ऊपर उठाकर मैंने अपनी हथेलियों में थामा तो देखा कि उसकी दोनों आँखों से गंगा जमना बह रही हैं।
पहले तो मुझे लगा कि उसकी गांड दर्द कर रही होगी।
पूछने पर वह एकदम से भावुक होकर बोली- तुमने मेरी आज की रात एक यादगार बना दी अभिनव! आज की रात मुझे ज़िन्दगी भर याद रहेगी। हाँ, ये मिनी आज से तुम्हारी रखैल है। तुम जब चाहो, जैसे भी चाहो मिनी के साथ खेल सकते हो।
यह कहकर वह मुझसे चिपक गयी।
मैंने भी उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए उससे कहा- मैं भी हर कदम पर तुम्हारा साथ दूँगा, मिनी।
मेरी बात सुनकर मिनी मेरी आँखों में अपनी आँखें डालकर मुझे देखने लगी।
मैंने धीरे-धीरे उसे अपने नज़दीक खींचा और उसके होंठों से अपने होंठ मिला दिए।
धीरे धीरे चुम्बनों में कामुकता छाने लगी और मिनी मेरे शरीर से कसकर चिपककर मेरे होंठ चूसने लगी। उसकी चूचियाँ मेरे सीने से दब रही थीं। मैं उसकी कमर की गोलाइयों को थामकर उन्हें अपनी ओर खींचकर मिनी की चूत को अपने लण्ड के ऊपर रगड़ रहा था।
फिर मैंने अपने हाथ उसकी पीठ के पीछे बाँध लिए और वह मेरे हाथों पर झूल गयी.
तब मैंने उसकी चूचियों को अपने मुँह में भरकर चूसना शुरू किया।
वह अपने दोनों हाथों से मुझे अपनी चूचियों में भींच रही थी।
फिर उसने अपने हाथ से मेरा लण्ड अपनी चूत में डाला और अपनी कमर से ज़ोर का धक्का लगाया। मेरा लण्ड उसकी चूत की गहराई में उतर गया।
मैंने उसकी कमर को अंदर की तरफ खींचकर उसे कमर चलाने का इशारा किया।
उसने अपनी कमर के धक्के तेज़ कर दिए।
थोड़ी ही देर में वह झड़ गयी और निढाल होकर मेरे ऊपर गिर गयी।
मैंने उससे कहा- मेरा अभी नहीं हुआ है।
तो उसने कुछ झटके मारने की कोशिश की. मगर थकान के कारण और उसका हो जाने के कारण उससे ज़्यादा झटके नहीं लगे।
मेरा लण्ड पूरा तना हुआ था और उसकी चूत में घुसा हुआ था। मैं मिनी को उसी स्थिति में लेकर खड़ा हुआ और फिर कमरे की फर्श पर उसे लिटाकर उसके ऊपर लेट गया। इस दौरान मेरा लण्ड उसकी चूत के अन्दर ही रहा।
अब मैंने मिनी के दोनों हाथ उसके सिर पर लगाये और धक्के लगाने शुरू कर दिए। मिनी ने भी अपनी टाँगें मेरी कमर के इर्द गिर्द लपेट दीं।
मेरा जल्दी नहीं होना था क्योंकि रात भर में मैं कई बार चुदाई कर चुका था. मिनी भी निढाल सी पड़ी रही। कमरे के एक तरफ मेरा दोस्त बेसुध पड़ा था और दूसरी तरफ तख्त पर मिनी की मम्मी और बीच में फर्श पर हम दोनों नंगे पड़े थे।
लगभग आधे घण्टे तक धक्के लगाने के बाद मैं मिनी की चूत के अन्दर ही झड़ गया। झड़ने के बाद भी मेरा लण्ड ढीला नहीं हुआ और काफी समय तक उसकी चूत के अंदर ही रहा।
जब मैंने उसे खींचकर निकाला तब भी खड़ा ही था।
मैंने मिनी से घोड़ी बनने के लिए कहा, मिनी घोड़ी बन गयी तो मैंने लण्ड उसकी गांड में डालकर फिर से उसकी गांड मारी।
इस बार मिनी ने बिना किसी न-नुकुर के अपनी गांड मरवाई।
रात भर में चार बार चुदकर मिनी थक गयी थी.
पर न उसका मन भरा था न मेरा।
ऐसा मौका शायद फिर नहीं मिलता इसलिए मिनी भी पूरा मज़ा ले लेना चाहती थी.
और इसी वजह से वह मुझे किसी भी बात के लिए बिल्कुल मना नहीं कर रही थी।
पर हम-दोनों थक गए थे और किसी भी वक़्त सो सकते थे। इसलिए मेरे कहने से हम दोनों ने बेमन से अपने अपने कपड़े पहन लिए।
तब तक चार बज चुके थे।
फिर मैंने मिनी को गर्भनिरोधक गोली दी जो मैं अपने साथ लाया था. उसे कहा- इसे खा ले तो कुछ खतरा नहीं होगा।
फिर मैं अपने दोस्त के बगल में जाकर लेट गया और मिनी भी अपनी मम्मी के पास जाकर लेट गयी।
जल्दी ही हम दोनों ही सो गए।
सुबह सात बजे मेरी ही नींद सबसे पहले खुली। देखा सब लोग सो रहे थे।
मैं तुरन्त उठा और मिनी को जगाने की कोशिश की पर मिनी गहरी नींद में सोई थी।
वह नहीं उठी।
तो फिर मैं होकर नहा-धोकर ताज़ा हो गया। मिनी की मम्मी और मेरा दोस्त आठ बजे के बाद सोकर उठे और मिनी को उसकी मम्मी ने जब बहुत जगाया तो दस बजे उठी।
किसी को क्या पता कि हम-दोनों ने रात भर क्या गुल खिलाये थे।
हम सबने दोपहर का खाना साथ खाया तभी मैंने मिनी की मम्मी से उसकी पढ़ाई की बात चलाई।
मैंने उनसे कहा कि वे चिन्ता न करें। सब व्यवस्था हो जाएगी।
फिर थोड़ी देर बाद हम लोग वापसी के लिए रवाना हो गए।
हमारे वापस जाने के समय मिनी बहुत ज़्यादा उदास थी। अगर उससे कुछ भी बोलता तो वह रो पड़ती इसलिए आँखों ही आँखों में उससे विदा लेकर मैं चल दिया।
बाद में मिनी की मम्मी ने उसे आगे की पढ़ाई के लिए शहर भेज दिया।
यहाँ हमारा एक फ्लैट भी था जो खाली ही पड़ा रहता था। उसकी चाबी मैंने अपने घर वालों से बात करके अपने दोस्त को दिलवा दी।
वही फ्लैट अगले पाँच साल मिनी का घर रहा जब तक कि उसने स्नातक फिर परास्नातक किया।
मिनी पाँच वर्षों तक मेरी रखैल रही और तब तक मैंने मिनी को लगभग रोज़ ही चोदा। हम लोग पूरे-पूरे दिन नंगे रहते और हर जगह, हर तरह से चुदाई करते।
जब तक उसकी शादी नहीं हो गयी मैंने उसे अनगिनत बार चोदा।
उसकी सबसे अच्छी बात यही थी कि उसे चाहे जिस भी तरह चोदो पर वह कभी मना नहीं करती थी।
उसने मेरी कई फंतासियों को भी पूरा करने में मेरा सहयोग किया।
अब वह शादीशुदा है, दो बच्चों की माँ है।
हमारे पास एक दूसरे के नम्बर भी हैं पर बात नहीं होती है।
मैं उसकी शादीशुदा ज़िन्दगी बिल्कुल भी दखल नहीं देता हूँ. पर आज भी जब उसका कानपुर आना होता है तब हम मिलते हैं और चुदाई भी करते हैं।